SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चंद्रलेखा वृत्तम् श्रीगुणचंद महावीरच० ५प्रस्तावः ॥१६३॥ SARKARICA इयरजणा दुविणयं जं नो दंसंति तं किमच्छरियं । तासिं महाबलाणं संकइ कुविओ कयंतोऽवि॥ ४॥ सुरखयरजक्खरक्खसमडप्फरप्फंसणावि नूण जरा । निचावट्टियजोवणगुणाण जासिं न संकमइ ॥५॥ चिरदूरकालवोलीणभूवईणं समग्गचरियाई । अजवि जाओ पयडंति सेललिहियप्पसत्थिव ॥६॥ इय तारिसपयडपभावजोगिणीचक्कवालकलियस्स । नयरस्स तस्स भण केण वन्नणा तीरए काउं? ॥ ७॥ तत्थ य अहं चंदलेहाभिहाणा जोगिणी परिवसामि, एसावि विजासिद्धसमीववत्तिणी मम जेट्ठा भइणी पसाहियपवरविजा अचंतदरिसणिजा जोगिणीपीढस्स चउत्थट्टाणपूयणिजा चंदकतानामा, गोभद्देण भणियं-भइणि ! को एस विजासिद्धो ?, किनामो?, कहं वा एरिसमाहप्पो?, किं वा एस तुह जेटुभइणीए एवं उवचरइत्ति, कहेसु बाढं कोऊहलाऊलं मे हिययं, चंदलेहाए भणियं-कहेमि, एसो हि कामरूपाभिहाणजोगिणीपरिवेढियस्स डमरसीहस्स पुत्तो ईसाणचंदो नाम, एएण य पुरा अणेगप्पयाराओ साहिऊण विजाओ अखलियपसरं सयलकामियसिद्धिं समीहमाणेण कच्चाइणीए भगवईए पुरओ कओ अट्ठोत्तरबिल्ललक्खेण होमो, तित्तियमित्तेणवि जाव न परितुट्ठा भगवई ताव आकड्डिऊण खग्गधेगुं समारद्धो नियकंधरं छिंदिउं, नियजीवियनिरवेक्खो, कंठद्धं जा न छिंदए एसो । ताव सहसत्ति कत्तोबि आगया देवि रुदाणी ॥१॥ अहह महाकट्टमिमं कीस तुमं पुत्त! ववसिओ भीमं ? । इय जंपिरीए तीए कराओ छुरिया लहुं हरिया ॥२॥ ॥१६३॥ Prainelibrary.org Join Educati o For Private 8 Personal Use Only nal
SR No.600114
Book TitleMahavir Charitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGunchandra
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1929
Total Pages704
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy