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वंमि एकारसीओ मोणेणं । कीरंति चउत्थेहिं सुयदेवीपूयणापुर्व ॥ ४३ ॥ सबंगसुंदरतवे कुणंति जिणपूयखंतिनियमपरा । अडववासे एगंतरंबिले धवलपक्खमि ॥ ४४ ॥ एवं निरुजसिहोवि हु नवरं सो होइ सामले पक्खे । तंमि य अहिओ कीरइ | गिलाणपडिजागरणनियमो ॥ ४५ ॥ सो परमभूषणो होइ जंमि आयंबिलाणि बत्तीसं । अंतरपारणयाई भूसणदाणं च | देवरस || ४६ || आयइजणगोऽवेवं नवरं सधासु धम्मकिरियासुं । अणिगूहियबलविरियप्पवित्तिजुत्तेहिं सो कज्जो ॥ ४७ ॥ एगंतरोववासा सबरसं पारणं च चेन्तंमि । सोहग्गकप्परुक्खो होइ तहा दिज्जए दाणं ॥ ४८ ॥ तवचरणसमत्तीए कप्प - तरू जिणपुरो ससत्तीए । कायबो नाणाविहफलविलसिरसाहियासहिओ ॥ ४९ ॥ तित्थयरजणणिपूयापुढं एक्कासणाई सत्तेव । तित्थयरजणणिनामगतवंमि कीरंति भद्दवए ॥ ५० ॥ एक्कासणाइएहिं भद्दवयचउक्कगंमि सोलसहिं । होइ समोसरणतवो तप्पूयापुचविहिएहिं ॥ ५१ ॥ नंदीसरपडपूया निययसामत्थसरिसतवचरणा । होइ अमावस्सतवो अमावसा - वासरुद्दिट्ठो ॥ ५२ ॥ सिरिपुंडरीयनामगतवंमि एगासणाइ कायवं । चेत्तस्स पुन्निमाए पूएयबा य तप्पडिमा ॥ ५३ ॥ | देवग्गठवियकलसो जा पुन्नो अक्खयाण मुट्ठीए । जो तत्थ सत्तिसरिसो तवो तमक्खयनिहिं बिंति ॥ ५४ ॥ वढइ जहा कलाए एक्केक्काएऽणुवासरं चंदो । संपुन्नो संपज्जइ जा सयलकलाहिं पबंमि ॥ ५५ ॥ तह पडिवयाए एक्को कवलो बीयाइ पुन्निमा जाव | एकेककवलवुडी जा तेसिं होइ पन्नरसगं ॥ ५६ ॥ एकेकं किमि य पक्खंपि कलं जहा ससी मुयइ । | कवलोवि तहा मुच्चइ जामावासाइ सो एक्को ॥ ५७ ॥ एसा चंदप्पडिमा जवमज्झा मासमित्तपरिमाणा । इण्हि तु वज्जमज्झं मासप्पाडिमं पवक्खामि ॥ ५८ ॥ पन्नरस पडिवयाए एकगहाणीऍ जावऽभावस्सा । एक्केणं कवलेणं जाया तह पडि
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