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________________ रवि तस्साणंतरबीए समयंमि जइ मरइ ॥४८॥ एवं तरतमजोएण सबसमएसु चेव एएसुं। जइ कुणइ पाणचार्य अणु- कमेणं नणु गणिज्जा ॥४९॥ एगसमयंमि लोए सुहुमागणिजिया उ जे उ पविसंति । ते हुंतऽसंखलोयप्पएसतुल्ला असंखेज्जा ॥५०॥ तत्तो असंखगुणिया अगणिकाया उ तेसि कायठिई । तत्तो संजमअणुभागबंधठाणाणिऽसंखाणि ॥५१॥ त तिजलायपासतला अस ताणि मरंतेण जया पुट्ठाणि कमुक्कमेण सबाणि । भावंमि बायरो सो सुहुमो य कमेण बोद्धवो ॥५२॥१६२ द्वारम् ॥ भरहाइ ५ विदेहाई ५ एरवयाइं च ५ पंच पत्तेयं । भन्नंति कम्मभूमी धम्मजोग्गा उ पन्नरस ॥५३॥ १६३ द्वारम् ॥ | हेमवयं १ हरिवासं २ देवकुरू ३ तह य उत्तरकुरूवि ४ । रम्मय ५ एरन्नवयं ६ इय छन्भूमी उ पंचगुणा ॥ ५४॥ एया अकम्मभूमीउ तीस सया जुअलधम्मजणठाणं । दसविहकप्पमहद्दुमसमुत्थभोगा पसिद्धाओ॥५५॥१६४ द्वारम् ॥ __ जाइ १ कुल २ रूव ३ बल ४ सुय ५ तव ६ लामि ७ स्सरिय ८ अट्ठमयमत्तो। एयाई चिय बंधइ असुहाई बहुं च संसारे ॥५६॥ १६५ द्वारम् ॥ भू १ जल २ जलणा ३ निल ४ वण ५ बि ६ ति ७ चउ ८ पंचिंदिएहिं ९ नव जीवा । मणवयणकाय ३ गुणिया हवंति ते सत्तवीसंति ॥ ५७॥ एक्कासीई सा करणकारणाणुमइताडिया होइ । सच्चिय तिकालगुणिया दुन्नि सया होंति तेयाला (२४३)॥५८॥ १६६ द्वारम् ॥ द्रिा संकप्पाइतिएणं ३ मणमाईहिं ३ तहेव करणेहिं ३ । कोहाइचउक्केणं ४ परिणामेऽट्ठोत्तरसयं च ॥५९॥ संकप्पो संरंभो १ परितावकरो भवे समारंभो २। आरंभो ३ उद्दवओ सुद्धनयाणं च सबेसि ॥ ६०॥ १६७ द्वारम् ॥ RAVESGROGRAMSABSCRICESS in Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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