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________________ ॥ ९८९ ॥ आरंभसयंकरणं अट्ठमिया अट्ठ मास वज्जेइ । नवमा नव मासे पुण पेसारंभेऽवि वज्जेइ ॥ ९९० ॥ दसमा दस मासे पुण उद्दिकपि भत्त नवि भुंजे । सो होइ उ छुरमुंडो सिहलिं वा धारए कोई ॥ ९९९ ॥ जं निहियमत्थजायं पुच्छंत सुयाण नवरि सो तत्थ । जइ जाणइ तो साहइ अह नवि तो बेइ नवि याणे । ९९२ ।। खुरमुंडो लोएण व रयहरणं पडिग्गहं च गिव्हित्ता । समणो हूओ विहरइ मासा एकारसुक्कोसं ॥ ९९३ ॥ ममकारेऽवोच्छिन्ने वच्चइ सन्नायपलि दहुं जे । तत्थवि साहुब जहा गिण्हइ फासुं तु आहारं ।। ९९४ ॥ १५३ द्वारम् ॥ जव १ जवजव २ गोहुम ३ सालि ४ वीहि ५ धन्नाण कोट्टयाईसुं । खिविऊणं पिहियाणं लित्ताणं मुद्दियाणं च ॥ ९९५ ॥ उक्कोसेण ठिइ होइ तिन्नि वरिसाणि तयणु एएसिं । विद्धंसिज्जइ जोणी तत्तो जायेइऽबीयतं ॥ ९९६ ॥ तिल १ मुग्ग २ मसूर ३ कलाय ४ मास ५ चवलय ६ कुलत्थ ७ तुवरीणं ८ । तह कसिणचणय ९ वल्लाण १० कोट्टयाईसु खिविणं ॥ ९९७ ॥ ओलित्ताणं पिहियाण लंछियाणं च मुद्दियाणं च । उक्किठिई वरिसाण पंचगं तो अबीयतं ॥ ९९८ ॥ अयसी १ लट्टा २ कंगू ३ कोडूसग ४ सण ५ वरट्ट ६ सिद्धत्था ७ । कोद्दव ८ रालग ९ मूलग बीयाणं १० कोट्टयाईसु ॥ ९९९ ॥ निक्खित्ताणं एयाणुकोसठिईऍ सत्त वरिसाई । होइ जहन्नेण पुणो अंतमुहुत्तं समग्गाणं ॥ १००० ॥ १५४ द्वारम् ॥ जोयणस्यं तु गंता अणहारेणं तु भंडसंकंती । वायागणिधूमेहि य विद्धत्थं होइ लोणाई ॥ १००१ ॥ हरियालो मणसिल पिप्पली उ खज्जूर मुद्दिया अभया । आइन्नमणाइन्ना तेऽवि हु एमेव नायबा ॥ २ ॥ आरुहणे ओरुहणे निसियण गोणाइणं च गाउम्हा । भोम्माहारच्छेओ उवकमेणं तु परिणामो ॥ ३ ॥ १५५ द्वारम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only *****জ6 www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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