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________________ SANSARREARSAA ॥ ८२८ ॥ मत्तो हीलेइ परं खिंसइ परिभवइ माणवत्तेसा ९ । माइपिइनायगाईण जो पुण अप्पेवि अवराहे ॥ ८२९॥ तिबं दंडं कुणई दहणंकणबंधताडणाईयं । तम्मित्तदोसवित्ती किरियाठाणं भवे दसमं १०॥ ८३०॥ एगारसमं माया अन्नं हिययंमि अन्न वायाए । अन्नं आयरई वा सकम्मणा गूढसामत्थो ॥ ८३१॥ मायावत्ती एसा ११ एत्तो पुण लोहवत्तिया इणमो। सावजारंभपरिग्गहेसु सत्तो महंतेसु ॥ ८३२ ॥ तह इत्थीकामेसु गिद्धो अप्पाणयं च रक्खंतो । अन्नेसिं सत्ताणं वहबंधणमारणे कुणइ ॥ ८३३ ॥ एसेह लोहवत्ती १२ इरियावहिअं अओ पवक्खामि । इह खलु अणगारस्सा समिईगुत्तीसुगुत्तस्स ॥ ८३४ ॥ सयतं अणप्पमत्तस्स भगवओ जाव चक्खुपम्हंपि । निवयइ ता सुहुमा हू इरियावहिया | किरिय एसा १३ ॥ ८३५ ॥ १२१ द्वारम् ॥ ___सामाइयं चउद्धा सुय १ दंसण २ देस ३ सब ४ भेएहिं । ताण इमे आगरिसा एगभवं पप्प भणियबा ॥ ८३६ ॥ तिण्ह सहस्सपुहुत्तं च सयपुहुत्तं च होइ विरईए । एगभवे आगरिसा एवइया हुंति नायबा ॥ ८३७ ॥ तिण्ह असंखसहस्सा सहसपुहुत्तं च होइ विरईए । नाणभवे आगरिसा एवइया टुतिं नायवा ॥ ८३८ ॥ १२२ द्वारम् ॥ सीलंगाण सहस्सा अट्ठारस एत्थ हुँति नियमेणं । भावेणं समणाणं अक्खंडचरित्तजुत्ताणं ॥ ८३९ ॥ जोए ३ करणे ३ सन्ना ४ इंदिय ५ भोमाइ १० समणधम्मे य १० । सौलंगसहस्साणं अट्ठारगस्स निष्फत्ती ॥ ८४० ॥ करणाइँ तिन्नि || जोगा मणमाईणि हवंति करणाई । आहाराई सन्ना चउ सोयाइंदिया पंच ॥ ८४१॥ भोमाई नव जीवा अजीवकाओ य समणधम्मो य । खंताइदसपयारो एवं ठिय भावणा एसा ॥ ८४२॥ न करइ मणेण आहारसन्नविप्पजढगो उ निय Join Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600108
Book TitlePravachan Saroddhar Uttararddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1926
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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