________________
प्रवचन०
सूत्रे
॥ ४८० ॥
स्थविरकल्पोपकर
थुमि यं विभासा ॥ ५१२ ॥ संथारुत्तरपट्टो अड्डाइज्जा य आयया हत्था । दोहंपि य वित्थारो हत्थो चउरंगुलं चेव ॥ ५१३ ॥ आयाणे निक्खिवणे ठाणे निसियण तुयट्ट संकोए । पुत्रिं पमज्जणट्ठा लिंगट्ठा चेव रयहरणं ॥ ५१४ ॥ संपाइ | मरयरेणू पमज्जणड्डा वयंति मुहपोतीं । नासं मुहं च बंधइ तीए वसहिं पमजंतो ॥ ५१५ ॥ छक्कायरक्खणट्ठा पायग्गहणं ५ णानि ६१ | जिणेहिं पन्नत्तं । जे य गुणा संभोगे हवंति ते पायगहणेऽवि ॥ ५१६ ॥ तणगहणानलसेवानिवारणा धम्मसुक्कझाणट्ठा । दिङ्कं कप्पग्गहणं गिलाणमरणडया चैव ॥ ५१७ ॥ वेउबडवाउडे वाइए य ही खद्धपजणणे चैव । तेसिं अणुग्गहट्ठा लिंगु| दयट्ठा य पट्टो य ॥ ५१८ ॥ अवरेवि सयंबुद्धा हवंति पत्तेयबुद्धमुणिणोऽवि । पढमा दुविहा एगे तित्थयरा तदियरा अवरे ॥ ५१९ ॥ तित्थयरवज्जियाणं बोही उवही सुयं च लिंगं च । नेयाइँ तेसि बोही जाइस्सरणाइणा होइ ॥ ५२० ॥ मुहपत्ती रयहरणं कप्पतिगं सत्त पायनिज्जोग । इय बारसहा उवही होइ सयंबुद्धसाहूणं ॥ ५२१ ॥ हवइ इमेसि मुणीणं | पुबाहीयं सुअं अहव नत्थि । जइ होइ देवया से लिंग अप्प अहव गुरुणो ॥ ५२२ ॥ जइ एगागीधिहु विहरणक्खमो तारिसी व से इच्छा । तो कुणइ तमन्नहा गच्छवासमणुसरइ निअमेणं ॥ ५२३ ।। पत्तेयबुद्धसाहूण होइ वसहाइदंसणे बोही । पोतियरयहरणेहिं तेसि जहण्णो दुहा उवही ॥ ५२४ ॥ मुहपोत्ती रयहरणं तह सत्त य पत्तयाइनिजोगो । उक्कोसोऽवि नवविहो सुयं पुणो पुवभवपढियं ।। ५२५ || एक्कारस अंगाई जहन्नओ होइ तं तहुक्कोसं । देसेण असं पुन्नाई हुंति पुबाई दस तस्स ।। ५२६ ।। लिंगं तु देवया देइ होइ कइयावि लिंगर हिओवि । एगागी च्चिय विहरइ नागच्छ गच्छवासे सो ।। ५२७ ।। ६१ द्वारम् ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
॥ ४८० ॥
www.jainelibrary.org