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श्रीपञ्चव.
३ गणा
णुण्णा
॥ २९० ॥
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गीअस्था कयकरणा कुलजा परिणामिआ य गंभीरा । चिरदिक्खिय बुड्डा अज्जावि पवित्तिणी भणिआ ।। १३१७ ।।
अगुणविमुके जो देइ गणं पवित्तिणिपयं वा । जोऽवि पडिच्छह नवरं सो पावइ आणमाईणि ॥ १३१८ ॥ बूढो गणहरसहो गोअमपमुहेहिं पुरिससीहेहिं । जो तं ठवइ अपत्ते जाणतो सो महापावो ॥ १३१९ ॥ कालोचिअगुणरहिओ जो अ ठवावेइ तह निविद्वेपि । जो अणुपालइ सम्मं विशुद्धभावो ससत्तीए ॥ १३२० ॥ एव पवत्तिणिसहो जो बूढो अज्जचंदाईहिं । जो तं ठवइ अपत्ते जाणतो सो महापावो ।। १३२१ ॥ कालोचिअगुणरहिआ जा अ ठवावेइ तह णिविद्वेपि । जो अणुपालइ सम्मं विशुद्धभावा ससत्तीए ।। १३२२ ।। लोग अवधाओ जत्थ गुरू एरिसा तहिं सीसा । लट्ठयरा अण्णेसिं अणायरो होइ अ गुणेसु ॥ १३२३ ॥ गुरुरगुणमलणाए गुरुअरबंधोत्ति ते परिचत्ता । तद् हिअनि ओअणाए आणाकोवेण अप्पावि ।। १३२४ ॥ तम्हा तित्राणं आराहिंतो जहोइअगुणेसु । दिज्ज गणं गीअत्थे णाऊण पवित्तिणिपयं वा ।। १३२५ ॥ दिक्खावएहिं पत्तो घिइमं पिंडेसणाविण्णाआ । पेढाइधरो अणुवत्तओ अ जोगो सलद्वी ए ।। १३२६ ॥ सोsa समं गुरुणा पुढो व गुरुदत्तजोग्गपरिवारो । विहरह तयभावम्मी विहिणा व समत्तकप्पेणं ॥ १३२७॥ ॥ २९० ॥ जाओ अ अजाओ अदुविहो कप्पो उ होइ णायो । एक्किकोऽवि अ दुविहो समत्तकप्पो अ असमत्तो ॥ १३२८ ॥ अथ जायको अग्गीओ खलु भवे अजाओ उ । पणगं समन्तकप्पो तदूणगो होइ असमत्तो ॥
१३२९ ॥
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द्रव्येsयोग्यो भावे ऽपि गणदानगुणाः
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