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जिण आएँ विहाणं सुईभूओ तीइ चेव उवउत्तो । अण्णंगमच्छिवंतो करेइ जं पवरवत्थूहं ॥ ११४० ॥ सुहगंधधूवपाणिअसङ्घोसहिमाइएहिं ता णवरं । कुंकुमगाइविलेवणमइसुरहिं मणहरं मलं ॥ ११४१ ॥ विविहणिवे अणमारत्तिगाइ धूव धय वंदणं विहिणा । जहसत्ति गीअवाइअणञ्चणदाणाइअं चैव ॥। १९४२ ॥ विहिआणुट्ठाणमिति एवमेअं सया करिताणं । होइ चरणस्स हेऊ णो इहलोगाद विक्खाए । १९४३ ॥ एवं चिअ भावधर आणाआराहणाय राओऽवि । जं पुण इअविवरीअं तं दवथओऽवि णो होइ ॥ ११४४ ॥ भावे अइपसंगो आणाविवरीअमेव जं किंचि । इह चित्तागुद्वाणं तं दद्यथओ भवे सवं ॥ ११४५ ॥ जं बीअरागगामी अह तं णणु सिट्ठणाइवि स एव । सिअ उचिअमेव जं तं आणाआराहणा एवं ॥ ११४६ ॥ जं पुण एअवित्तं एगंतेणेव भावसुण्णंति ।
तं विसमिवि ण तओ भावथयाहेउओ निअमा ( उचिओ ) ॥ ११४७ ॥
भोगाइ फलविसेसो उ अत्थि एत्तोऽवि विसयभेएणं । तुच्छो अ तभ जम्हा हवइ पगारंतरेणावि ॥ ११४८ ॥ उचियाणुट्ठाणाओ विचित्तजइजोगतुल्लमो एस। जं ता कह दवथओ ? तदारेणऽप्पभावाओं ॥ ११४९ ॥ जिणभवणाइविहाणद्दारेणं एस होइ सुहजोगो । उचियाणुट्ठाणं चिअ तुच्छो जहजोगओ णवरं ॥ ११५० ॥ सङ्घत्थ णिरभिसंगत्तणेण जइजोगमो महं होइ । एसो उ अभिस्संगा कत्थऽवि तुच्छेऽवि तुच्छो उ ॥ ११५१ ॥ जम्हा अभिसंगो जीवं दूसेइ नियमओ चेव । तद्दृसिअस्स जोगो विसघारिअजोगतुल्लोत्ति ॥ ११५२ ॥
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