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________________ ACCORRECORDC सवेऽवि उ उस्सग्गं करिति सवे पुणोऽवि वंदति । नासन्ने नाइदूरे गुरुवयणपडिच्छगा होति ॥१००५॥ निहाविगहापरिवजिएहिं गुत्तेहिं पंजलिउडेहिं । भत्तिबहुमाणपुत्वं उवउत्तेहिं सुणेअवं ॥१००६॥ अहिकखंतेहिं सुभासिआई वयणाई अत्थमहुराई । विम्हिअमुहहिं हरिसागएहिं हरिसं जणतेहिं ॥१००७॥ गुरुपरिओसगएणं गुरुभत्तीए तहेव विणएणं । इच्छिअसुत्तत्थाणं खिप्पं पारं समुवयंति ॥ १००८ ॥ वक्खाणसमत्तीए जोगं काऊण काइआईणं । वंदति तओ जिहँ अण्णे पुत्वचिअ भणंति ॥१००९॥ चोएइ जई जिट्टो कहिंचि सुत्तत्थधारणाविकलो। वक्खाणलद्धिहीणो निरत्ययं वंदणं तम्मि ॥१०१०॥ अह वयपरिआएहिं लहुओऽविहु भासगो इह जिट्ठो।रायणिअवंदणे पुण तस्सऽवि आसायणा भंते॥१०११॥ जइऽवि वयमाइएहिं लहुओ सुत्तत्थधारणापड्डुओ। वक्खाणलद्धिमं जो सो चिअ इह धिप्पई जिट्ठो॥१०१२॥ आसायणावि नेवं पडुच्च जिणवयणभासगं जम्हा । वंदणगं रायणिओ तेण गुणेणंपि सो चेव ॥१०१३ ॥ ण वयो एत्थ पमाणं ण य परिआओ उनिच्छयणएणं । ववहारओ उजुज्जइ उभयणयमयं पुण पमाणं॥१०१४॥ निच्छयओ दुन्नेअं को भावे कम्मि वट्टई समणो ?। ववहारओ उ कीरइ जो पुवठिओ चरित्तम्मि ॥१०१५॥ ववहारोऽवि हु बलवं जं छउमत्थंपि वंदई अरहा । जा होइ अणाभिन्नो जाणतो धम्मयं एयं ॥ १०१६॥ एस्थ उ जिणवयणाओ सुत्तासायणबहुत्तदोसाउ। भासंतजिट्ठगस्स उ काय होइ किइकम्मं ॥१०१७॥ वक्खाणेअवं पुण जिणवयणं णंदिमाइ सुपसत्थं । जे जम्मि जम्मि काले जावइअं भावसंजुत्तं ॥१०१८॥ AACHCRACKGROCCOLOR en Education tema For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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