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________________ MAMALAMALASARA इय जोऽपण्णवणिज्जो कहण्णु सामाइअं भवे तस्स ? । असइ अ इमंमि नाया जुत्तोवट्ठावणा णेवं ॥ ६२४ ॥ जं बीअं चारित्तं एसा पढमस्सऽभावओ कह तं ? । असइ अ तस्सारोवणमण्णाणपगासगं नवरं ॥ ६२५ ॥ सच्चमिणं निच्छयओऽपन्नवाणिजोन तम्मि संतम्मि । ववहारओ असुद्धे जायइ कम्मोदयवसेणं ॥ ६२६॥ संजलणाणं उदओ अप्पडिसिद्धो उ तस्स भावेऽवि । सो अ अइआरहेऊ एएसु असुद्धगं तं तु ॥ ६२७॥ पडिवाईविअ एअंभणि संतेऽवि दवलिंगम्मि । पुण भावी विअ असई कत्थइ जम्हा इमं सुत्तं ॥ १२८ ॥॥ तिण्ह सहस्सपुहृत्तं सयप्पुहुत्तं च होइ बिरईए । एगभवे आगरिसा एवइआ होंति नायवा ॥ ६२९ ।। एएसिमंतरे वाऽपण्णवणिज्जुत्ति नत्थि दोसो उ । अच्चागो तस्स पुणो संभवओ निरइसइगुरुणा ॥ ६३०॥ अइसंकिलेसवजणहेऊ उचिओ अणेण परिभोगो। जीअं किलिट्टकालोत्ति एव सेसंपि जोइज्जा ॥ ६३१॥ अहवा वत्थुसहायो विन्नेओ रायभिचमाईणं । जत्थंतरं महंतं लोगविरोहो अणिहफलं ॥ ६३२॥ दो थेर खुड्ड धेरे खुड्डग वोच्चत्थ मग्गणा होइ । रन्नो अमच्चमाई संजइमझे महादेवी ॥ ६३३ ॥ दो पुत्तपिआ पुत्ता पुत्तो एगस्स पत्त न उ थेरो। गाहिउ सयं व विअरइ रायणिओ होउ एसविअ ॥६३४॥ राया रायाणो वा दोणिवि सम पत्त दोसु पासेसु । ईसरसिडिअमच्चे निअम घड कुला दुवे खुड्डे ॥ ६३५॥ समयं तु अणेगेसुं पत्तेसुंअणभिओगमावलिया। एगउ दुहओऽवि ठिआसमराइणिआ जहासन्न॥६३६॥दारं॥ अकहित्ता कायवए जहाणुरूवं तु हेउणातेहिं । अणभिगयतदत्थं वाऽपरिच्छिउँ नो उवट्ठावे ॥ ६३७॥ Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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