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________________ रयताण भाणधरणं उउबद्धे निक्खि विज वासासु । अगणी तेणभए वा रज्जक्खोभे विराहणया ॥ २८३ ॥ परिगलमाणो हीरेज डहणभेआ तहेव छक्काया । गुत्तो अ सयं डझे हीरिज व जं च तेण विणा ॥२८४॥ वासासु णत्थि अगणी णेव अ तेणा उ दंडिआ सत्था। तेण अबंधण ठवणा एवं पडिलेहणा पाए ॥२८५॥ 'पडिलेहणा पमज्जण' त्ति दारं गयं ॥२॥ कयजोगसमायारा उवओगं कायजोग ( काउगुरु) समीवंमि । आवसियाए णिती जोगेण य भिक्खणहाए ॥ २८६ ॥ काइयमाइयजोगं काउं चित्तूण पत्तए ताहे । डंडं च संजयं तो गुरुपुरओ ठाउमुवउत्तो ॥ २८७ ॥ संदिसह भणंति गुरुं उबओग करेमु तेणऽणुण्णाया। उवओगकरावणि करेमि उस्सग्गमिचाइ ॥ २८८ ॥ अह कड्डिऊण सुत्तं अक्खलियाइगुणसंजुअं पच्छा। चिट्ठति काउसग्गं चिंतंति अ तत्थ मंगलगं॥ २८९॥ तप्पुव्वयं जयत्थं अन्ने उ भणंति धम्मजोगमिणं । गुरुबालवुहसिक्खगरेसिंमि न अप्पणो चेव ॥ २९॥ चिंतित्तु तओ पच्छा मंगलपुत्वं भणंति विणयणया।संदिसहत्ति गुरूविअलाभोत्ति भणाइ उवउत्तो॥२९१॥ कह घेत्थिमोत्ति पच्छा सविसेसणया भणंति ते सम्मं । आह गुरूवि तहत्ति अजह गहिअंपुवसाहहिं ।।२९२॥ आवस्सियाएँ जस्स य जोगोत्ति भणित्तु ते तओ णिति । निक्कारणेन कप्पइ साहणं वसहि निग्गमणं ॥२९३॥ गुरुणा अपेसियाणं गुरुसंदिट्टेण वावि कजमि । तह चेव कारणमिवि न कप्पई दोससम्भावा ।। २९४ ॥ ALKARORADA-44PEOSSAX Jain Educati o nal For Private Personal use only Hainelibrary.org
SR No.600102
Book TitlePanchvastuka Granth
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages630
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size13 MB
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