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________________ प्रस्तावना। नन्दिसूत्रम् । ॥२४॥ [8] सकल भरतक्षेत्रप्रमाण [९] अर्धमास पूर्ण [१०] जंबूद्वीपप्रमाण (१ लाख योजन) [१०] साधिक मास [११] मनुष्यलोकप्रमाण [११] १ वर्ष [१२] रुचकवरद्वीपप्रमाण [१२] वर्षपृथक्त्व [१३] संख्यातद्वीपसमुद्रप्रमाण [१३] संख्यात वर्ष (१००० वर्षथी वधु) [१४] असंख्यात द्वीपसमुद्र [१४] असंख्यातकाल (पल्योपमादि) आखरे तेमनो नियम दर्शावतां जणावे छे के 'कालनी वृद्धि थतां द्रव्य, क्षेत्र, काल अने भाव चारे वधे. क्षेत्रनी वृद्धि थतां द्रव्य भाव तो अवश्य वधे पण कालनी भजना अर्थात् वधे पण खरो अने न पण वधे. आम थवानुं कारण जणावतां टीकाकार खुलासो आपे छ के क्षेत्र करतां द्रव्य सूक्ष्म छे, अने द्रव्य करतां पर्याय सूक्ष्म छे. [४] हीयमान अवधिज्ञान:- जेम शुभ अध्यवसायोवडे अवधिज्ञान वधे छे. तेम अप्रशस्त अध्यवसायस्थानोमा वर्तता (अविरत सम्यग्दृष्टि) तेमज वर्तमानचारित्रवाळा, (देशविरति आदि) ते संक्लेशवाळा होय अथवा जे संक्लिष्ट चारित्रवाळा होय छे, तेमनु अवधिज्ञान चारे बाजुथी घटे छे. [५] प्रतिपाति अवधिज्ञान:- प्राप्त थयेलं जे अवधिज्ञान एकाएक दीपकना घुझावानी जेम नाश पामे छे, ॥२४॥ Jan Education Inter For Private Personal use only
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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