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________________ नन्दिसूत्रम् ॥२११।। अवचूरिसमलंकृतम् कारणा अणंता अकारणा अणंता जीवा अणंता अजीवा अणंता भवसिद्धिया अणंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा अणंता असिद्धा पन्नता भावमभावा हेउमहेउ कारणमकारणे चेव ॥ जीवाजीवा भविअमभविआ सिद्धा असिद्धा य ॥१॥ इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरिअहिंसु । इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं पडुपन्नकाले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरिआहिति । इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरिअहिस्संति । इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइंसु । इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं पडुपन्नकाले परित्ता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीईवयंति। इच्चेइ दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अणंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतं संसारकंतारं वीईवइस्संति । इच्चेइअं दुवालसंगं गणिपिडगं न कयाइ नासी न कयाइ न भवइ न कयाइ न भविस्सइ भुविं च भवइ अभविस्सइअ धुवे निअए सासए अक्खए अव्वए अविट्ठिए निच्चे से जहा ॥२१॥ Jain Education l For Private & Personel Use Only 2 alinelibrary.org
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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