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________________ नन्दिसूत्रम् ॥ १९०॥ Jain Education काला अष्टौ समुदेशन कालाः, संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण तानि च किल त्रयोविंशति लक्षाः चत्वारश्च सहस्राः, शेषं पाठसिद्धं यावत् निगमनं ॥ से किं तं अणुत्तरोववाइअदसाओ ? अणुत्तरोववाइअदसासु णं अणुत्तरोववाइ आणं नगराई उज्जाणाई चेइआई वणसंडाणं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइयपरलोइयाइडिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओ परिआया सुअपरिग्गहा तवोवहाणाई पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपञ्चक्खाणाई पाओवगमणाई अणुत्तरोववाइत्ते उबवत्ती सुकुलपच्चायाईओ पुणबोहिलाभा अंतकिरियाओ आघविजंति, अणुत्तरोववाइअदसासु णं परित्ता वायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखिज्जा वेढा संखिजा सिलोगा संखिज्जाओ निजुत्तीओ संखिजाओ पडिवत्तीओ संखिजाओ संगहणीओ से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे एगे सुअक्खंधे तिन्निवग्गा तिन्नि उद्देसणकाला तिन्नि समुद्दे सणकाला संखिज्जा पयसहस्साई पयग्गेणं संखिज्जा अक्खरा अणंता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा अनंता थावरा सासयकडनिवद्धनिकाइया जिणपन्नता भावा आघविजंति पन्नविज्जंति परूविज्वंति दंसिजंति निदंसिज्जंति उवदंसिजंति से एवं आया से एवं नाया से एवं विन्नाया से एवं चरणकरणपरूवणा आघविजइ । से तं अणुत्तरोववाइअदाओ ॥ ९ ॥ अथ कास्ताः अनुत्तरौपपातिकदशाः १, न विद्यते उत्तरः- प्रधानो येभ्यस्तेऽनुत्तराः - सर्वोत्तमा इत्यर्थः । उपपातेन निर्वृत्ता For Private & Personal Use Only अवचूरिसमलंकृतम् ॥ १९० ॥ jainelibrary.org
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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