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________________ नन्दिसूत्रम् ॥१८८॥ Jain Education से किं तं वासगदसाओ ? उवासगदशासु णं समणोवासयाणं नगराई उज्जाणाई चेइआई वणसंडाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइअपरलोइआ इडिविसेसा भोगपरिचाया पव्वज्जाओ परिआगा सुअपरिग्गहा तवोवहाणाइं सीलव्वयगुणवेरमणपचक्खाण पोसहोववासपडिवज्जणया पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपञ्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चाईओ पुणबोहिलाभा अंतकिरिआओ अ आघविजंति, उवासगदसाणं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखिज्जा वेढा संखिज्जा सिलोगा संखिज्जाओ निज्जुत्तीओ संखिजाओ संगहणीओ संखिज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे एगे सुअसंघे दस अज्झणा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखिज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखिज्जा अक्खरा अणंता गमा अनंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपन्नता भावा आघविजंति पन्नविज्जंति परुविज्जंति दंसिजंति उवदंसिज्जंति, से एवं आया से एवं विन्नाया एवं चरणकरणपरुवणा आघविज्जह, से तं उवासगदसाओ ॥ १ ॥ अथ काः ता उपाशकदशाः, १ उपासकाः श्रावकाः तत्गतअणुव्रतगुणत्रतादिक्रियाकलापप्रतिबद्धाः - दशअध्ययनानि उपासकदशाः, तथा चाह सूरिः - 'उवासगदसासु णं' इत्यादि पाठसिद्धं यावत् निगमनं, नवरं संख्येयानि पदसहस्राणि पदाग्रेण इति दशलक्षाः द्विपंचाशत् सहस्रा इत्यर्थः । द्वितीयं तु व्याख्यानं प्रागिव भावनीयं । For Private & Personal Use Only अवचूरिसमलंकृत ॥१८८॥ jainelibrary.org
SR No.600097
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorMalaygiri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1969
Total Pages294
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_nandisutra
File Size14 MB
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