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________________ श्लोक ३५०० । सुमतिसाधु दशवकालिक लघुवृत्ति सुमतिसूरि , अवचूरि शान्तदेव , अवचरि दशवकालिक शब्दार्थवृत्ति समयसुंदर श्लोक ३०३३ नियुक्त्यवचुरि , वृत्तिदीपिका माणिक्यशेखर दशवै. ॥१३॥ आनी उपर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि छे अने टीकाओ तो धणी छे. तेमा नियुक्ति, भाष्य अने मूळ सहितनी व्याख्यावाळी टीका भवविरहसूरिनी छे. तेनुं अने चूर्णितुं संपादन आगमोद्धारकश्रीए करेलुं छे. दशकालिक मूळ उपर नानी टीकाओ, अवचूरि अने टबाओ वगेरे तो घणाए छे. लघुटीका-बंदनप्रतिक्रमणावचूरि 'ना उपोद्घातमा अमे ए वात जणावी छे के-अवचूरिकार महाराज मूळने मुख्य करीने व्याख्या करता होय छे. एटले मूळ उपरनी जे व्याख्या छे तेने आधारे व्याख्या होय छे. तेवी रीते आ लघुवृत्तिमां पण वृत्तिकार महाराजे पृ. २२० मा कयु छे के "दशकालिकानुयोगात्, सूत्रव्याख्या पृथक्कृता । हरिभद्राचार्यकृतान्मोहाद्भक्त्याऽथवा मया ॥३॥ श्रीमद्बोधक शिष्येण, श्रीमत्सुमतिसूरिणा | विद्वद्भिस्तत्र नोद्वेगो, मयि कार्यों मनागपि ॥४॥" आ बे श्लोकवडे पोतानुं श्रीहरिभद्रसूरिनी वृत्तिने अनुसरवापणुं जणाव्यु छे. तेमज पृ. १ मां"जयति विजितान्यतेजाः सुरासुराधीशसेवितः श्रीमान् । विमलस्त्रासविरहित स्त्रिलोकचिन्तामणिर्वीरः ॥ १ ॥ ॥१३॥ Jain Education Internal For Private Personel Use Only Maw.jainelibrary.org
SR No.600093
Book TitleDashvaikalikam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchanvijay, Kshemankarsagar
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1954
Total Pages276
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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