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________________ परिशिष्टम् प्रव्रज्यायाम् प्रव्रज्यायाम् प्रव्रज्यायाम् प्रव्रज्यायाम् सिरिसंति- जइ नेच्छसि डज्झेउं संसारमहादवऽगिजालाहिं । नवदोणमेहतुल्लं तो पव्वज्जं पवजाहि ॥२७१४।। नाहचरिए *जइ नेच्छसि भमडेउं संसारमहारहट्टतम्मि । तब्भंगलोहदंडं तो पव्वज्जं पवज्जाहि ॥२७१५।। जइ नेच्छसि मरिउँ जे संसारमहारणम्मि भीमम्मि । दढलोहकवयसरिसं तो पव्वज्ज पवजाहि ॥२७१६।। जइ नेच्छसि विणिवायं संसारमहाडवीए भीमाए । भवसयसहस्सदुलहं तो पव्वज पवज्जाहि ॥२७१०॥ जइ पविसइ पायाले, चिट्ठइ लोहस्स पंजरे वा वि । रुक्खऽग्गे वा दुरुहइ तहा वि छुट्टइ न देव्वाओ ॥२२१६॥ *जइ वा वच्चइ दूर चइत्तु देसंतराई भयभीओ । तत्थ वि पुवकयाई पुरओ गंतूण चिट्ठति ॥२२१७।। * जइ सायरम्मि पविसइ महल्लहल्लंतरंगिरतरंगे । तहवि न छुट्टइ को वि हु संसारे पुव्वविहियाओ ॥२२१४॥ *जइधम्मम्मि पयत्तो कायब्वो निच्चमेव तुब्भेहिं । जम्हा हु साहुधम्मो दलेइ नीसेसकम्माई ॥५६५३।। #जम्मंतराऽऽवज्जियदुद्रुकम्मपाहाणसंघायऽभिचूरणम्मि । णिम्माविओ वज्जसिलाचएणं उग्गो तवो होइ घणो महंतो ॥९८।। * जस्स न भत्तऽणुरत्ता भज्जा समसुह-दुहा गिहे अस्थि । तस्स गिहं पि हु स्नं अभग्गवंतस्स पुरिसस्स 1॥७०३१॥ *जस्स पुणो पासम्मि समसुह-दुक्खा समाणचित्तिल्ला । अस्थि पिया गुणकलिया रणं पि जणाउलं तस्स ।।७०३२।। जह को वि रयणदीवे गंतुं लभ्रूण विविहरयणाई । निद्दपमायपमत्तो हारइ रयणाणि मंदमई ॥३८८६।। *तह जो लटुं सम्मत्तमाइविविहाई धम्मरयणाई । कुणइ पमायं मूढो सो हारइ ताणि निब्भंतं ॥३८८७ *जह जलमज्झम्मि ठियं ससिणो बिबं न तीरए घेत्तुं । तह महिलाणं पि मणं, ता धी धी थीसहावस्स ॥५०६०॥ सर्वविरतौ तपसि सुभार्यायाम् सुभार्यायाम् प्रमादत्यागे नारीस्वरूपे *९४१
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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