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सिरिसंति
नाहचरिए
मज्झ उणो व उलया एए चिट्ठेति एत्तिया पासे । ता कह लुब्भामि अहं असाररूवम्मि तुह अत्थे ? ॥६७॥ ७०९१॥ अहवा विहु काउरिसो लुब्भइ अत्थम्मि दंसिए संते। ता मा दंसेहि तयं, किंच इमं जं तए भणियं ॥६८॥७०९२ ॥ न हु होमि परकलत्तं तं कह पुंच्छिज्जए इमं वयणं । जम्हा हु अपरिणीया मज्झ तुमं तह अवरिया य ॥ ६९ ॥ ७०९३ ॥ दोपि मह निवित्ती, सकलत्तं होसि ता कहं तं सि ? । जइ य अहं मन्नेमिं ता णियपुरिसो तुह भवामि ॥७०॥७०९४ ।। एवं च तेण बुत्ते भइ इमा 'जइ य तं न मन्नेसि । ता तुह पुरओ चेव य थीहचं तुज्झ काहामि ॥७१ || ७०९५ ॥ तामह मयाए सुपुरिस ! पाणइवाओ वि तुह धुवं होही' । सो भणइ 'न मे हच्चा, पाणइवाओ वि नो मज्झ ॥७२॥ ७०९६ ॥ मण-इ-कायाण जओ एक्कस्स वि नत्थि मज्झ वावरणं । तेण विणा कह बंधो ? भणियमिणं आगमे जम्हा ॥ ७३ ॥ ७०९७ ॥ "उच्चाoियम्मि पाए इरियासमियस्स संकमट्टाए । बावज्जेज्ज कुलिंगी मरेज्ज तं जोगमासज्ज || ७४||७०९८ ॥ न य तस्स तन्निमित्तो बंधो सुमो वि देसिओ समए । जम्हा सो अपमत्तो सा ये पमाओ त्ति णिद्दिट्ठा" ॥७५॥७०९९ ॥ ता मा भणिहिसि एत्थं किंचि तुमं वसिय जेण वच्चामि' ।
तो रुट्ठा भइ इमा 'मा भणिहिसि जह न भणियं ति ॥ ७६ ॥ ७१००॥
न हु ते होही कुसलं वयणममन्नंतयस्स मह तणयं' । भणइ इमो 'जइ एवं, तो सिग्धं लेहि मह पाणे' ॥७७॥७१०१॥ पुण भइ इमा 'अहयं रइरसलुद्धा हु पाविया केण । अचंतंसुवियडूढा सुरयव्वावारपरिकुसला ॥७८॥७१०२॥ १. बुजिञ्जए जे० । लुब्भिञ्जए का० ।। २. उ जे० ॥
सावगस्स
सुद्दगस्स अक्खाणयं
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