________________
सावगस्स सुद्दगस्स अक्खाणयं
सिरिसंति- सप्पस्स पुण दरीए दुवारदेसम्मि पावए रयणं । सप्पफणासंभूयं अचंतमहासुतेइल्लं ॥१९॥७०४३॥ नाहचरिए करिणाहआसयम्मि अखुहियचित्तो उ पावए कणयं । वरपंचवण्णकलियं नाणाविहजाइसंभूयं ॥२०॥७०४४॥
गेहम्मि रक्खसस्स उ संपत्तो लहइ विविहरयणाई । नारीणं अक्खुभिओ लहइ अणेगाओ वत्थूओ ॥२१॥७०४५॥ एए सब्वे वि पुणो उवद्दया जक्खरायनिम्मविया । जत्तो जत्तो आणाओ भावए बलइ तं घेत्तुं ॥२२॥७०४६॥ अह पुण न वि पडिहासइ तो सव्वे लंधिऊण जाइ पुणो । जक्खसुलोयणभवणे साहइ जक्खं तहिं गंतुं ॥२३॥७०४७॥ जक्खो वि हु उवसग्गे करेइ जइ खुहइ तत्थ सो मरइ । अह न वि खुब्भइ तत्तो आणाकारी भवे जक्खो ॥२४॥७०४८॥ इयरेण वि मग्गेणं गएहिं जक्खो उ साहिओ संतो । एक्कं चिय देइ वरं जं रुइयं चित्तमज्झम्मि ॥२५॥७०४९॥
एयं पुण सव्व चिय एत्थ बसंतेण भद्द ! विन्नायं । नियकुलपरिवाडीए मए वि तं साहियं तुज्झ ॥२६॥७०५०॥ * पहिय ! तमं ता गच्छसु मग्गेणं वकएण सुत्थेण । जेणाऽऽरोहसि सेलं दिणेहिं बहुएहि बि सुहेण ॥२७॥७०५१॥
तो सुद्दओ पयंपइ 'दंससु मे उज्जुयं तयं मग्गं । तेण वि भावं नाउं पयंसिओ पद्धरो मग्गो ॥२८॥७०५२।। एसो वि तेण मग्गेण जाव आरुहइ पढमयपयाणे । ता पेच्छइ तं सीहं पुरओ आबद्धगरुयकम ॥२९॥७०५३॥ बालेंदुसरिसदाढ दीहरनंगूलविहियगुरुसदं । पिंगलसडाकडप्पं तं दटुं चिंतए एसो ॥३०॥७०५४॥
१. बालिटु जे० का० ।। २. °रलंगू जे० का० ।।