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________________ सिरिसंतिनाहर 'एगतो' त्ति कलित्ता परोप्परं ताओ जंपिउं लग्गा । ससुरो वि ताण मंतं सब्भावगयं निसामेइ || ८ || ६८५९ ॥ अह जंपर चंदमई ' हलाहला ! कहह निययमणरुइयं । जं जीए भत्तमिदु' सीलमई भणइ तो एवं ॥ ९॥६८६० ॥ ' मा मा भगिणि! पयंपह एवं जेणं हवंति इह कन्ना । कुडुस्स वि ता चिट्ठह हला हला ! मूणभावेण ' ॥१०॥६८६१ ॥ इयहिं वि पडिभणियं 'मा बीहसु तं हले! जओ एत्थ । ण हु अत्थि कोवि रण्णे, बीसत्था भणह ता रुइयं' ॥ ११ ॥६८६२ ॥ संलत्तं इयराहिं वि 'जइ एवं भणसु ता तुमं चेव । जेणऽम्हाणं जेट्ठा' इयवुत्ते भणइ चंदमई ॥१२॥६८६३ ॥ 'हल सहि ! जाणउं जइ हउं भुंजउं उण्हउ खिचु घिएण निजुंजरं । कच्चरियहिं पप्पडियहिं जुत्तउ, जें परिणमइ सुहेणई भुत्तउ ॥ १३ ॥ ६८६४॥ अहवा वासियरब्ब विसिट्टी, सुरुहिधियां दहियई परिविट्ठी । राइत्तउ अहवा वि करंबउ, कच्चूरउ जहिं अस्थि उ अंबउ || १४ ||६८६५ ॥ कित्तिमई बिहु एव पर्यपइ 'जं मणवंछिउ कहमि त संपइ । खीर- खंडु - घिउ मह मणि भावइ, जड़ किर इच्छई को वि दियावइ ||१५||६८६६॥ अहवा सालि - दालि - घिउ- वंजण अंतरि मुहह सणिद्धिमभंजण । उप्पर कडही तह बत्तीसी मई नियइच्छ एह परिसीसी' ॥१६॥ ६८६७॥ १. मा हला पयं जे० ।। २. उ जिं परि° जे० का० ॥। ३. किरि जे० ॥। ४. कडिही का० ॥ 3454545454545 रणो सूरपालस्स अक्खाणयं ८१२
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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