SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 820
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुलससावगस्स अक्खाणयं सिरिसंति- सम्मुहमह णिग्गच्छइ, सुलसो वि हु कुणइ तस्स उवयारं । राया वि विभूईए गेहम्मि पवेसए सुलस ॥२५९॥६४६८॥ नाहचरिए तो सुलसभारिया सा तोसेणऽभुटुए तयं इंतं । 'सागयमिह होउ दढं आगच्छंतस्स कंतस्स' ॥२६०॥६४६९॥ * वद्धावणं विहेउं गिण्हित्ता तह पभूयमुवयारं । जाइ निवो नियगेहे वण्णंतो सुलसगुणनिवहं ॥२६१॥६४७०॥ - सुलसो वि हु सयणाणं उवयाराई विहित्तु णिचिंतो । तीए समं घरिणीए भुंजइ भोए वरसुरो व्य ॥२६२॥६४७१॥ सा वि हु कामपडाया तइया णिव्वासियम्मि सुलसम्मि । सव्वत्तो गविसावइ, लहइ पउत्तिं पि नो कहवि ॥२६३॥६४७२॥ तत्तो वेणीबंध विहेइ परिहेइ सेयवत्थाई । अन्नं पि हु णेवत्थं पउत्थवइयामयं कुणइ ॥२६४॥६४७३॥ थक्का आगंतूणं गेहे सुलसस्स चत्तउवभोगा । तं नाऊणं सुलसो तदुवरि चित्तं पुणो कुणइ ॥२६५॥६४७४॥ * दोहिं वि ताहिं समाणं पुवज्जियकम्मपरिणईजणियं । भुंजइ अणण्णसरिसं माणुसलोगुडभवं सोक्खं ॥२६६॥६४७५॥ सत्थेल्लयपुरिसा वि हु 'अन्नत्तो आगय' त्ति काऊण । निययगिहगमणववएसओ उ देवेण संवरिया ॥२६७॥६४७६॥ सुलसस्स वि भोगहलं सुणिकाइयकम्ममणुहवंतस्स । जा जंति के वि दियहा ता सुलसो चिंतए एवं ॥२६८॥६४७७॥ २० रयणीए चरिमजामे सुत्तविउद्घो "अहो जिय ! अणज्ज ! । सुगुरूण कहताण विजं न निवित्ती कया तइया ॥२६९॥६४७८॥ थूलगपरिग्गहस्स उ तं सि तुम पाव ! पाविओ दुक्खं । ता इण्हि पि णिवित्तिं अपरिमियाओ करेहि तुम' ॥२७०॥६४७९॥ ७७० १. तस्सुब° का० ।। २. एतं पा० ।। ३. णेवच्छं जे० ।। ४. "मई जे० ।। ५. सहरिया जे० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy