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________________ सीलवईअ सीलस्स रक्खणं सिरिसंति- भणइ य 'तं चेव पिए ! मज्झ वि आणं पयच्छ निस्संकं । जा एवंगुणकलिया महासई सव्वजणपयडा' ॥२१३॥६११३॥ नाहचरिए तो जंपइ सीलवई 'पिययम ! मा एरिसं पयंपेहि । सुकुलुग्गयाण जुजइ आण च्चिय भत्तुणो काउं' ॥२१४॥६११४॥ ॐ एवं तु खणं एवं उत्तर-पच्चुत्तरेहिं चिडेउं । 'सव्वस्स वि सामित्तं तुह दिन्नं' जंपए सेटी ॥२१५॥६११५॥ ॐ एवं च वट्टमाणे काले सुसावगत्तणपराणं । अह अन्नया कयाई पुरिसेणेगेण विन्नत्तं ॥२१६॥६११६॥ 'वद्धाविज्जसि सामिय ! एत्थं कुसुमागारम्मि उज्जाणे । बहुसमणसंघसहिओ समोसढो तियसकयपूओ ॥२१७॥६११७॥ ५ नामेण सीलसूरी सूरीवरसत्थकणयकसवट्टो । भव्वारविंदभाणू नाणचउक्केण दिप्पंतो' ॥२१८॥६११८॥ आयण्णिऊण सेट्ठी सीलमईसंजुओ पहटुमणो । देइ पभूयं दव्यं वद्धावयपवरपुरिसस्स ॥२१९॥६११९॥ काऊण य सामग्गिं बहुपरिवारेण परिगओ सेट्ठी । सूरिपयवंदणत्थं पत्तो कुसुमागरुज्जाणे ॥२२०॥६१२०॥ पंचविहाभिगमेणं पविसइ सूरिस्स पायमूलम्मि । वंदित्तु मुणिवरिंद सेसे वि य वंदिउं साहू ॥२२१॥६१२१॥ उवविसइ उचियाणे सूरी वि हु कहइ तो जिणुद्दिटुं । धम्म सिवसुहमूलं संसारसमुद्दनित्थरणं ॥२२२॥६१२२॥ नाऊण कहतरयं सीलमई भणइ पणयसिरकमला। 'सामिय ! किमन्नजम्मे मए कयं? किंच मह उवरिं ॥२२३॥६१२३॥ एए चत्तारि जणा जाया रागाउरा निवाऽऽईया ?' । तो जंपइ मुणिनाहो 'एगमणा सुणसु तं भद्दे ! ॥२२४॥६१२४॥ ७२२
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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