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________________ सिरिसंतिनाहचरिए अट्ठाय जिणभवणिहिं किजहिं दीणाऽणाहहं दाणई दिजहिं । संघु असेसु वि सक्कारिजइ, सत्तु वि आगउ नवि वारिज्जइ ॥ २०३ ॥६१०३॥ अन्नु वि किंचिवि जं जसु जोगउं, तं तसु दिज्जइ वत्थु समग्गउं । अन्नु विकिउ किंपि ज जाणिउ बद्धावणउं असेसु स वाणिउ ॥ २०४ ॥ ६१०४ ॥ वत्ते वद्धावणए सव्वम्मि विसज्जियम्मि लोगम्मि । कयभोयणावसाणे गेहं संभालए सेट्ठी ॥२०५॥६१०५॥ पुट्ठा य तओ घरिणी ‘किं भद्दे ! किंचि किंचि न निएमि ?' । सा जंपइ 'नाह ! इमं चिट्ठई सव्वं पि अन्नत्थ' ॥२०६॥६१०६॥ पुच्छ तयं सो' सुंदरि ! किं कारणं तयं ठवियं । अन्नत्थ ?' तओ सा वि हु भणइ 'महल्ला कहा एसा ॥२०७॥६१०७॥ काउं मज्झ पसायं उवविससु सुहासणम्मि कंत ! तुमं । जेण कहेमि असेसं वित्तंतं एत्थ जं वित्तं ' ॥ २०८ ॥ ६१०८ ॥ तत्तो सुहासणम्मि सेट्ठी उवविसइ तस्स सुणणत्थं । नमिउं सीलवई वि हु अक्खड़ 'सुण रमण ! परमत्थं ॥ २०९ ॥ ६१०९॥ तइया विजयाए तुम अप्पाहेउं ममं बहुपयारं । सिद्धाविओ सि सामिय ! तत्तो अहयं तुहाएसं ॥२१०॥६११०॥ कुमाणी धम्मपराजि - जइपूयाए जाव चिट्ठामि । ता केत्तिए वि काले तुह मित्तो एत्थ संपत्तो ॥ २११६ १११ ॥ इच्चाइ निरवसेसं अक्खायं पुच्छणाय पचंतं । सोऊण इमं सेट्ठी न माइ निययम्मि अंगम्मि ॥२१२॥६११२ ॥ १. जं जे० ।। २. इ अन्नं पि सव्वत्थ जे० ॥ १० +=+=+=+=+=+=+=+* सीलवईअ सीलस्स रक्खणं ७२१
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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