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________________ सिरिसंतिनाहचरिए इय भणिए एसो वि हु संबहिऊणं तओ दुयं चलिओ । एवं ते वच्चता संपत्ता अन्नदेसम्मि ||३८|| ५९३९ ॥ तत्थ य कयाणगाईं दंसंति महायणस्स सव्बाई । बहुणा लाभेण तओ विक्कीयाइं तहिं तेहिं ॥३९॥५९४०॥ जो सो समुद्ददत्तो पभूयदव्वस्स विढवणट्ठाए । कुणइ तहिं बवहारं, ता विप्पो झत्ति संवूढो ॥४०॥५९४१॥ भणइ य 'वच्चामि अहं संवूढो मित्त ! निययगेहम्मि' । सेट्ठी वि भणइ 'एवं करेहि, अहयं पुणो भद्द ! ॥४१॥५९४२ ॥ एहामि कित्तिएहिं वि दिवसेहिं गएहिं जेण बवहरियं । चिटुइ तयमुग्गाहिय आगच्छिस्सामि कयकिच्चो ॥४२॥ ५९४३ ॥ किंतु इमं अप्पेजसु लेह, तह पायजालयमणग्धं । नियभाउज्जायाए अक्खेज्जसु तह य संदेसं' ॥४३॥५९४४ ॥ " माऊसुगा भवेजसि संपत्तो चेव एस अहयं पि" । इय भणिऊण विसज्जइ तं विप्पं निययनयरम्मि ॥ ४४ ॥ ५९४५ ॥ अणवरयपयाणेहिं पत्तो एसो वि पविसइ गिहम्मि । तत्तो य एइ लोगो बहुओ बद्धावओ तस्स || ४५ || ५९४६॥ वित्ते बद्धावणए सीलमई निसुणिऊण तं पत्तं । नियपइपउत्तिपुच्छणहेउं सा जाइ तस्स गिहे ॥४६॥५९४७॥ विप्पो वितमि समए हिउबरिमभूमिगाए एगागी । चिटुइ पल्लंकगओ तो पुट्ठो परियणो तीए ॥ ४७ ॥ ५९४८ ॥ जह 'कत्थ मज्झदियरो ?', तेण वि कहियं जहा 'गिहस्सुवरिं' । तो सा तत्थेव गया पल्लंकगओ जहिं एसो ॥४८॥५९४९॥ १. 'याई च तो तेहिं जे० का० ॥ २. जो का० ॥ १० *********** सीलवईअ सीलस्स रक्खणं ७०७
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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