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________________ सिरिसंतिनाहचरिए भाणुदत्तस्स अक्खाणयं एवं विचिंतित्तु करेइ पूर्य सेवेइ निच्चं पि दहेइ धूयं । तीरम्मि तो तस्स खणेइ खहुं बेलाविरामे नियए वियदं ॥७॥५४८१॥ जा तत्थ पेच्छेइ वराडयाई द?ण ते होइ विसायभाई। एवं सया तस्स करेंतयस्स अइनिच्छयम्मि कयचित्तयस्स ॥८॥५४८२॥ जा जाइ एवं किर कोई कालो, ता तुटु नीरायरू मणि विसालो । खड्डाए तो तस्स खिवेइ रतं, दीसतयं जं बहुतेयवतं ॥९॥५४८३॥ दटुण तं तोसमुवेइ चित्ते, घेत्तुं मणिं जाइ तओ विवित्ते । गंडीए बंधेवि चलेइ देसे, पत्तो य एगम्मि उ सन्निवेसे ॥१०॥५४८४॥ तरुस्स छायाए सुहं पसुत्तो, निद्दप्पमाएण दढं पमत्तो । एत्थंतरे तत्थ गइंदनाहो एगो वियड्ढो मयगंधवाहो ॥११॥५४८५॥ भएण तो तस्स असेसलोओ, विसंलो धाइ गयप्पमाओ । नरेण एगेण दयापरेण उहाविओ अइगहिरस्सरेणं ॥१२॥५४८६।। ६५२ १. रामेण निए वि पा० ।। २. बियहु का विना ।। ३. "याई त्रु० ।। ४. यनिच्छयस्स पा० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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