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________________ सिरिसंतिनाहचरिए ####### 'किंचि, जइ न पत्तिज्जहा धुवं । जोएह मज्झ पासम्मि, जोइयं पि पुणो पुणो ॥ १९६ ॥ ५३२३॥ चोरनाहेण तो तस्स पासाओ कंथडाइयं । उद्दालित्ताण नीसेसं, जहाजाओ विसजिओ ॥ १९७ ॥ ५३२४॥ तत्तो ण जंप किंचि सो पक्खी तो इमेण उ । भणिया चोरा 'अरे ! एवं सम्मं जोएह कंथडे ' ॥ १९८ ॥ ५३२५ ।। जाव तं सयछिडुं तु दट्टु चोरा भणति तो । 'किं एत्थ देव ! जोएमो सयच्छिडुम्मि कंथडे ? ' ॥१९९॥५३२६॥ सउणस्स पञ्चयत्ताओ चोरसामी सयं तयं । जोयए गेहिउं सम्मं सव्वाणाणि चंपिउं ॥ २००॥५३२७ ।। ताव सव्वे ठाणे वररन्नाणि पेच्छइ । सव्वाणि सोहिउं लेइ, दढं धूणंतओ सिरं ॥ २०१ ॥५३२८॥ एसो वि पच्छओ जाइ बलित्ताण पुणो वि हु । तम्मि चेव पुरे पत्तो समुद्दे गमणम्मणो ॥ २०२॥५३२९॥ एत्तोय सत्थवाहो सो जलमज्झम्मि निवडिओ । पावए पुव्यभिन्नस्स बोहित्थस्स फलहयं ॥ २०३॥५३३०॥ तेणंत सत्तरतेण तरित्ताण महोयहिं । संपत्तो पट्टणे तम्मि दिव्यजोया सए गिहे ॥ २०४ ॥ ५३३१॥ पुट्ठो य तत्थ लोगेहिं 'कहं तं निवडिओ जले ?' । तेणाऽवि अक्खियं सव्वं लोहनंदस्स चेट्ठियं ॥ २०५ ॥ ५३३२ ॥ पत्तो एत्यंतरे एसो दिट्ठो लोगेण तक्खणा । बंधिऊणं तओ नीओ सो तेहिं निवमंदिरे ॥ २०६ ॥ ५३३३ ॥ साहिओ य असेसो वि वृत्तंतो णरवइस्स उ । णिवेणाऽवि महाकोवभिउडी भंगुरदिट्टिणा ॥२०७॥५३३४ ॥ १. गिहिउं पा० चिना ।। २. "रताणि त्रु० ॥ अग्गिसम्मस्स बंभणस कहाणय ६३८
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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