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________________ बारसमं भवग्गहणं सिरिसंति- उब्भवियम्मि सहस्सए जूय-चक्क-मुसलाण समुस्सए । तह बहुरंगमहद्धए वरचमराण चए निबद्धए ॥१३६॥४७३६॥ नाहचरिए एवं च वद्धावणयमहूसवे पवट्टमाणे नरिंदो सय-सहस्स-लक्खेहिं करेइ वद्धावयजणाणमुवयारं, देइ य भट्ट-चट्ट- बंदिण-नड-नट्ट-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिय-वेलबगाईणं हय-गय-रह-रयण-कणग-वत्थाइए, पडिच्छए य बहुजणाऽऽणिए उवयारे । एवं च सुहरसाऽमयविणिम्मिए इव परमाणंदमहूसववासरे समइक्कंते, तहा सेसेसु वि चंद-सूरदरिसण-धम्मजागरियाइएसु, संपत्ते य नामकरणवासरे कओ पुणो वि परमाणंदो, अवि य मेलिउ सयणवग्गु नीसेसु वि, दिन्नउं भोयणु तसु सविसेसु वि। . खज्ज-भोज-पेजेहिं समाउलु, वत्थ-पत्त-पूगेहिं रमाउलु ॥१३७॥४७३७॥ * एवं तसु नीसेसह लोयह परमाणदि विहियपमोयह । अह पच्चक्खु पयंपइ राऊ आणंदि रोमंचियकाऊ ॥२॥४७३८॥ जह 'एयम्मि अम्ह गभत्थि वि संति हय देसम्मि समत्थि वि। . संति नाउँ ति कारणि बालह एयह किउ मई नयणविसालह' ॥१३८॥४७३९॥ तं च रायवयणमायन्निऊण भणियमसेसलोएण 'अहो सोहणमहो सोहणं' ति, जमम्हेहिं चिंतियं तं चेव देवेण वि नाम * विहियमेयस्स' त्ति । एवं च वड्ढए भयवं । न य थन्नमुवजीवइ, जओ हत्थंगुटुए वरममयरसं संकामए सक्को । तहा बालो वि भयवं विसिटुरूव-लावण्ण-वण्णसंपण्णो, अवि य१. रदसण का० ।। २. थणमुत्रु०॥
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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