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________________ सिरिसंतिनाहचरिए बारसमं भवग्गहणं एत्थंतरि ईसाणयसुरिंदु हू पंचरूवु लेविणु जिणिंदु, पुणु सक्कण्हवणविहि सुप्पसत्थ वित्थारइ भत्तिए अइमहत्थ, चाउद्दिसिफलिहविणिम्मियंग विउरुव्वइ वसह विसालसिंग, सिंगग्गह अटुसु वारिधार, आयासि जति अचंतफार, एकत्थ मिलवि जिणउत्तिमंगि निवडंति समत्थगुणोहचंगि, इय जम्ममहूसवि वट्टमाणि सुरचेटुपयट्टहिं अप्पमाणि । वायंति केवि, गायंति केवि, नचंति केवि, वग्गंति केवि । धावति केवि, उल्ललहिं केवि, गजंति केवि, वरिसंति केवि । झलझलहिं केवि सुरविजु जेव, गुलुगुलहिं केवि दोघुट्ट जेंव । हिंसंति केवि वरतुरय जेंव, नायंति केवि मयराउ जेंव । इय हरिसभराउलसुरयणम्मि, नचंतवरऽच्छरसंकुलम्मि । जिणु गंधकसाइं लूहियंगू, परिहाविवि वत्थु विसिटु चंगु । ५५३ १."हाववि पा०॥
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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