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________________ सूरस्स रायस्स कहाणय सिरिसंति- साहेहि य ज कज्ज' साहइ कुमरो वि रायआएसं । जंपइ सा 'नेहि मम, करेमि दुट्ठाण जं जोग्ग' ॥५६६॥४४५७।। नाहचरिए ता तं घेत्तूण इमो आगच्छइ जाव तत्थ नयरीए । ता बीहावइ लोयं, दिसो दिसं धाइ लोगो वि ॥५६७॥४४५८॥ इय कलयलरावेणं अत्थाणे नरवइस्स संपत्तो । भणइ य 'गिण्हह एवं नवप्पसूयं महावग्धिं ॥५६८॥४४५९॥ गिण्हह य जहिच्छाए दुद्धं दुहिऊण एयपासाओ' । इय भणिऊणं कण्णा उ मेल्लए ताण मज्झम्मि ॥५६९॥४४६०॥ तो सा वंतरिवग्धी तब्बुद्धीदायगं महामंतिं । घेत्तुं भक्खइ सहसा ता राया जंपए एवं ॥५७०॥४४६१॥ 'हा वच्छराय ! हा वच्छराय ! मा कुणसु एरिस कम्म। गिण्हसु एवं वग्धिं जा न वि सब्वे खयं नेइ' ॥५७१॥४४६२॥ गेण्हइ य वच्छराओ पुणो वि कण्णम्मि झत्ति तं वग्छि। राया वि भणइ 'भद्दय ! नेहि इमं आणिया जत्तो ॥५७२॥४४६३॥ • कजं न किंचि अम्हे' इय भणिए लोयपत्थणाए य । नेइ निययम्मि गेहे भजाओ कुणंति पडिवत्तिं ॥५७३॥४४६४॥ खामित्ता सा मुक्का वच्चइ निययम्मि झत्ति हाणम्मि । कुमरो वि ताहि समयं भुंजइ भोए अणण्णसमे ॥५७४॥४४६५॥ अह अन्नम्मि दिणम्मी राया जा सरइ ताओ बालाओ। पुणरवि पंचसरेणं सहसा वेयल्लयं नीओ॥५७५॥४४६६॥ तं दटुं तयवत्थं पुणो वि मंतंति मंतिणो सब्वे । पेच्छंति पुण वि मंतं 'आणावह जमलनीरं' ति ॥५७६॥४४६७॥ तो राएणं भणिओ 'आणसु तं वच्छ ! जमलगिरिनीरं । जेण मह होइ देहं बहुरोयविवज्जियं लटुं' ॥५७७॥४४६८॥ ५१५ १. °दिसिं जे० ।। २. धायए त्रु० ।।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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