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________________ सिरिसंतिनाहचरिए दाऊण निययकरगहियबीडयं तो निवो विसज्जेइ । एसो वि जाइ नियए गेहे जणणीण पासम्मि ॥ २८६ ॥ ४१७७॥ काऊण पायगहणं करकमलं धरिय उत्तिमंगम्मि । विन्नवइ जहा 'विहियं एरिसयं तुम्ह भगिणी ॥ २८७ ॥ ४१७८॥ ता संपइ खमियव्वं अंबे ! जं किंचि मज्झ दुच्चरियं । जेण गवेसणहेउं वच्चामिं तस्स वत्थस्स ॥२८८॥४१७९॥ छहं मासाणते पुणो वि तुह पायवंदणं काहं । जइ पुण न एमि कहवि हु जलंजली मज्झ दायव्यो' ॥ २८९ ॥ ४१८०॥ तं सोऊणं देवी अणिच्छमाणी वि हिययमज्झमि । 'होउ तुह पुत्त ! विजओ' वयणेणं जंपए एवं ॥ २९० ॥ ४१८१॥ ‘आएसो’ त्ति भणित्ता छक्कन्नोवाहणाहि गूढपओ । वरखग्गखेडयकरो निग्गच्छइ झत्ति नयरीओ ॥२९१॥४१८२॥ अणवरयपयाणेहिं बच्चइ एसो महिं विलंघतो । दाहिणदिसिमासइओ जा वच्चइ तत्थ कइ वि दिणे ॥ २९२॥४१८३॥ बहुदेस-गाम-नगराइमंडियं वसुमई निरिक्खंतो । पत्तो महामहंतं एग अडवीमुहं घोरं ॥ २९३॥४१८४॥ पेच्छइ य तहिं खुडलयपट्टणं तुंगपवरपायारं । चिंतइ य "हंत ! किं पुण अइलहुयं पट्टणं एयं ? ॥ २९४॥४१८५॥ किं होही भूयाणं, उयाहु जक्खाण रक्खसाणं वा ? | अहवा नहि नहि एयं दीसइ य चउप्पयं जेण ॥ २९५ ॥ ४१८६॥ १० किंवा विविगप्पेहिं ? जं होही तं तु दीसिही लग्गं" । इय चिंतंतो पत्तो दुवारदेसम्मि अह तस्स ॥ २९६॥४१८७॥ पविसंतो य नियच्छइ मज्झम्मी तस्स तुंगपासायं । पासेसु लहु गिहाई पविसइ कोड्डेण पासाए ||२९७॥४१८८॥ १. लंघेतो पा० ॥ २. डवीण मुहं घोरं का० । 'डबीमहाघोरं जे० ॥। ३. मज्झम्मि जे० । मज्झम्मि का० ॥ सूरस्स रायस्स कहाणय ४९१
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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