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________________ सिरिसंतिनाहचरिए किं देवयाओ मंस भक्खति, कुणंति जेणिमं कम्मं ?' । भयवं पि आह 'भद्दय ! न खंति मंसाई देवीओ ॥ २६२ ॥ ४१५३ ॥ किंतु इमा अइपावा कीलइ एवंविहाहिं कीलाहिं'। भणइ नरो 'जइ एवं, ता कहह कहाणयं पुरओ' ॥ २६३ ॥ ४१५४॥ आह जिणो सो कुमरो तं वत्थं गिण्हिऊण जाइ गिहे । सुविऊण रयणिसेसं खवेइ जा उग्गओ सूरो ॥ २६४ ॥ ४१५५॥ गणितयं वत्थं बच्चइ नरनाहपायमूलम्भि । जोहाराई काउं उवविडो निययठाणम् ि॥ २६५॥४१५६ ॥ पत्थावं नाऊणं पुट्टो राएण रयणिवृत्तंतं । तेणाऽवि हु नि, सेसो जो जह वित्तो तहा कहिओ ॥ २६६॥४१५७॥ दिन्नं च करयलम्मी निवस्स तं तेण देवयावत्थं । वररयणमंडियं तं दगुणं विंभियां सव्वे ॥२६७॥४१५८॥ दिन्नं च तयं रन्ना नियडनिविट्ठाए पट्टदेवीए । तं सा जाब नियंसइ, तो मिलइ न कंचुओ कोवि ॥ २६८ ॥ ४१५९ ॥ पण य 'देव ! एस्स उवरि न य मिलइ कंचुओ कोवि' । राया वि भणइ 'सुंदरि ! एयं नणु देवयावत्थं ॥ २६९ ॥ ४१६०॥ युवा, ता कह मिलति एयस्स ?' । तं सोऊणं देवी अहिययरं अद्धिई कुणइ ॥२७०॥४१६१॥ तं अधिइपरं दट्टु साहित्ता पुब्बकहियेवुत्तंतं । आणेउं कंचुलियं कुमरो अप्पेइ रायस्स ॥२७१ ॥४१६२॥ तेणाऽवि हु देवीए समपिओ परिहिओ य एईए । जा उबरिल्लं जोयइ, ता मिलइ तहेव नो किंचि ॥ २७२ ॥ ४१६३॥ अधिवसेणं तत्तो अहिययरं धरइ चित्तसंतावं । न य लब्भइ तं वत्थं तो जंपइ पुण वि सा देवी || २७३ ॥ ४१६४॥ १. "राई त्रु० ।। २. विम्हिया जे० का० ॥ ३. अ जे० ॥। ४. ° लोउन्भवा य ता त्रु० का० ॥ ५. यवित्तंतं त्रु० ॥ सूरस्स रायस्स कहाणय ४८९
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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