SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 501
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीहरहरण्णोपुव्वभववुत्तंतं सिरिसंति तूण नियगिहम्मि गुरूवइटेण विहिविहाणेण । तं तवचरण विहियं विसुद्धसद्धासमग्गेहिं ॥१७॥३७४१॥ नाहचरिए तस्स य पारणयदिणे भोयणवेलाए दोन्नि वि जणाई । चिंतंति "हत ! कहवि हु जइ एइ महाजई कोइ ॥१८॥३७४२॥ तो तं पडिलाहित्ता पवित्तमत्ताणयं करेऊण । पारणयं कुव्वामो" इय चिंतंताई सहस त्ति ॥१९॥३७४३॥ एगागिमहापडिम पडिवन्न धीवरं महासाहुं । दुक्करतवसुसियतणु पेच्छंति गिहम्मि पविसंतं ॥२०॥३७४४॥ तं दटुणं दोन्नि वि कयत्थमप्पाणयं कलिंताई । गिण्हित्तु पवरभत्तं समुट्ठियाई तओ साहू ॥२१॥३७४५॥ नाऊण ताण भावं, एसणियं भत्त-पाणियं तह य । उड्डइ पत्तं तेहिं वि पक्खित्तं भावभरिएहिं ॥२२॥३७४६॥ वंदित्तु तओ साहुं सयमवि भुत्ताई, अन्नया पुण वि । तत्थ पुरे विहरंतं साहुं सहसा नियच्छति ॥२३॥३७४७॥ नामेण सव्वगुत्तं तस्स य पासम्मि पुण वि सोऊण । जइधम्म तो तेहिं वि पडिवन्ना सव्वविरइ त्ति ॥२४७॥३७४८॥ संवेगाइसयाओ करेइ तो रायगुत्तसाहू वि । नियगुरुणाऽणुन्नाओ आयंबिलवड्ढमाणतेवं ॥२५॥३७४९॥ * तं कमसो अहसुत्तं पालित्ता आउयक्खए पत्ते । अणसणविहिणा पत्तो कप्पे सिरिबंभलोयम्मि ॥२६॥३७५०॥ भुजित्तु तत्थ भोए दिव्वे अह सागरोवमे दस उ । आउयखयम्मि चविउ पुरम्मि सिरिनयरतिलयम्मि ॥२७॥३७५१॥ विजुरहभारियाए माणसवेगाए नंदणो जाओ । नामेणं सीहरहो पच्चक्खो एस जो तुज्झ ॥२८॥३७५२॥ १. यगेह का० ।। २. °मत्ताणयं जे० का० ॥ ३. कलेता त्रु० ॥ ४. ओहुइ पा० | ५. दृश्यता तृतीय परिशिष्टम् ।। ६. पालेत्ता पा० विना ।। ४५१
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy