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________________ सिरिसंतिनाहचरिए जेण तु संसारे महासमुद्दम्मि बुहुमाणाइं । उद्धरियाई महायस ! नियसिक्खाजाणवत्तेण ॥ ६२ ॥ ३४११॥ इ सि तुमं न कहेतो पुव्यभवं अम्ह नाणविसएण । न य कोहाइविवागं ता कोहपरव्बसमणाई ॥६३॥३४१२॥ अणणं तूणं नरयाइगईसु नूण जंताई । ता संपइ बीसज्जह जेण सकज्जं पसाहेमो' ॥६४॥ ३४१३ ॥ तो वज्जाउहचक्की जंपइ वियसंतहिययसयवत्तो । 'तुन्भे च्चिय धन्नाई, जाण विवेगो समुल्लसिओ ॥६५॥३४१४॥ ता वह भद्दाई, कुणह सकज्जम्मि उज्जमं तुरियं । तरिउ जेण भवोहं अइरा पावेह परमपयं' ॥ ६६ ॥ ३४१५ ॥ एव भणियम्मि तिण्णि वि पयपउमं नरवरस्स नमिऊण । उप्पइयाई सहसा तमालदलसामलं गयणं ॥६७॥३४१६॥ काऊ रजसुत्थं खेमंकरजिणवरस्स पासम्मि । गहिऊण वयमुयारं कुणंति तव-संजमं घोरं ॥ ६८ ॥ ३४१७॥ संतिमई मरिऊणं ईसाणिंदो तओ समुप्पन्नो । इयरेसिं घाइखए उप्पन्नं केवलं नाणं ॥६९॥३४१८॥ ईसाणिंदो महिमं करेइ मोत्तूण देवकिच्चाई । नियदेहस्स य पूयं काऊणं जाइ ईसाणे ॥७०॥३४१९॥ तत्तो चविऊण इहं सो सिद्धो आगमिस्सजम्मम्मि । इयरे वि आउयखए संपत्ता सासयं ठाणं ॥ ७१ ॥ ३४२० ॥ एवं च पत्थावाऽऽगयं भणिऊण पगयं भण्णइ । तत्थ पुव्वं जो जुवराया सहस्साउहकुमारो भणिओ, तस्स १. ईसाणंदो का० ॥ २ तस्स य ज का० ॥ 45454545454545 अट्टम - नवमभवग्गहणाई ४०३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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