SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिसंतिनाहचरिए अमयंबनिवस्स कहाणयं सयमवि पहाणलग्ग गणाविउं पुच्छए तओ मग्गं । तम्मि य दिणम्मि दाणं देइ तहा कुणइ सम्माणं ॥३६॥२९८०॥ संचलइ तओहुत्तो जणएण सबंधुणाऽणुगम्मतो । चलिओ चालियसत्थो वररहउच्छंगमज्झत्थो ॥३७॥२९८१॥ अणुवइऊणं जणओ जा किर बलइ त्ति ताव सो पणओ। जंपइ जोडियहत्थो ‘आएसं देहि बीसत्थो' ॥३८॥२९८२॥ * तओ सेटुिणा बहुमाण-भत्ति-विणय-णयरजियहियएणं वियसंतवयणसयवत्तेणं आणंदजलप्पवाहपुण्णऽच्छेणं कर करेण धरिऊण भणिओ- 'वच्छ ! जइ एवं, ता सुहलालिओ तुम, अचंतसरलो पयईए, दूर देसतर, विसमा मग्गा, ५ दुप्परिपालणीयं भंडजाय, अणवरद्धकुद्धा चोर-चरडाइणो, वंचणपगुणा धुत्तजाइणो, मायाविणो वाणियगा, ता सव्वहा कयाइ पंडिएणं, कयाइ मुरुक्नेणं, कयाइ दयालुणा, कयाइ निग्घिणेणं, कयाइ सुहडेणं, कयाइ कायरेणं, कयाइ चाइणा, कयाई महाकिवणेणं सव्वहा परेहिं अलद्धमझगंभीरखीरसायरधीरधिसणेण होयव्यं, ति, भणमाणो बलिओ रयणसारसेट्ठी । धणदत्तेण वि दिन्नं पयाणयं । एत्थंतरम्मि य सथिल्लयनराणां के आलावा सुबिउं पयत्ता ? अवि य'रेरे! जोवहि सयडं, लायहि मग्गेण, मा चिरावेहि। झाक्कसु करहे, छत्तसु ताणुवरिं किं विसन्नो सि ? ॥३९॥२९८३॥ *१. देह त्रु०॥ २. करे परि जे० ।। ३. "इ किब* पा० त्रु० ।। ४. "सारो सेट्ठी पा० ।। ५. सत्येल्लयन' का० । सथिल्लन पा० ।। ६. घेत्तसु जे० ॥ ७. का० विना ताण बरे किं जे० त्रु० । ताण छरे किं पा०।। ३५०
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy