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ग्रंथ के प्रकाशन की प्रेरणास्रोत पूज्य मुनिश्री जम्बूविजयजी के प्रति सहृदय हम अपना आभार ज्ञापित करते हैं । अपनी अस्वस्थता एवं अतिव्यस्तता के बावजूद भी पं० श्री अमृतभाई भोजक ने इस ग्रंथ के प्रकाशन में सभी सम्भव सहयोग दिया अतः हम उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं।
शीघ्रता एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से इस ग्रंथ का प्रकाशन करने हेतु हम 'यूनिक आफसेटप्रेस' और उसके संचालकों के भी उतने ही आभारी हैं। हमें विश्वास है कि प्रस्तुत ग्रंथ समस्त प्राकृत भाषाप्रेमियों एवं शोधार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगा।
प्रताप भोगीलाल