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* नाम से राजा, चक्रवर्ती, मुनि आदि की भिन्न-भिन्न पर्यायों को पाता है तो मैंने उस नाम के लिए भिन्न भिन्न पृष्ठाकों को सूचित नहीं
किया है, बल्कि नाम के परिचय के विभाग मे उस नाम वाले पात्र की अवस्थाओं का यथाशक्य उल्लेख किया है। सन्दर्भ को देखते हुए अन्यान्य पृष्ठों पर आप वही नाम कई बार पाएंगे । यदि उसी व्यक्ति के नाम में कोई अन्तर है तो मैने वह नाम प्रथम बार प्राप्त नाम के नीचे पृष्ठाङ्क सहित सूचित किया है, जैसे-मंगलकलस, मंगलक्कलस, मंगलकुंभ आदि । एक ही नाम वाले पात्र यदि भिन्न भिन्न हैं तो उनका उल्लेख भिन्न भिन्न रूप में पृष्ठाकों के साथ किया है।
द्वितीय परिशिष्ट में 'अ' और 'आ' संज्ञक दो विभाग हैं। प्रथम विभाग में पृष्ठसंख्या के उल्लेख पूर्वक औपदेशिक पद तथा सूक्तियां हैं। द्वितीय विभाग में देवाधिदेव श्री शान्तिनाथस्वामी आदि तीर्थङ्करों एवं मुनियों के भक्तिपरक, स्वरूपबोधक गाथाएं तथा मुनिभगवन्तों के द्वारा आशिषस्वरूप उक्त 'धर्मलाभ' शब्द की अर्थसूचक अर्थात् धर्म की फलप्ररूपक गाथाएं है।
तृतीय परिशिष्ट में ग्रन्थ में उल्लेखप्राप्त 'तपों' का सविधि वर्णन है।
चतुर्थ परिशिष्ट में ग्रन्थकार आचार्य श्री जी के द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ में नाममात्र से उद्दिष्ट विषयों का अन्यान्य ग्रन्थों के आधार से निरूपण है। जैसे- ७२ कलाएं, १४ विद्यास्थान आदि ।