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________________ अटुम-नवमभवग्गहणाई सिरिसंति [अटुम-नवमभवग्गहणाइं] नाहचरिए वण्णित्तु छटु-सत्तमभवगहणाई जहाससत्तीए । संपइ कहेमि किंची अटुम-नवमाई भत्तीए ॥१॥२७७७॥ "अत्थि इहेव जंबुद्दीवे दीवे पुव्वविदेहे सीया णाम महाणई । जाय-पोढमहिल व्य घणरसाणुगया नीयाणुवत्तिणी य, सुयणजणचित्तवित्ति व्य सच्छासया वित्थिण्णा य, अपरिमलियसत्थपुरिसमइ ब्व कुग्गाहाणुगया मंदा य, वीवाहमंडवभूमि , व्व सुवेइसमालंकिया सविदुरा य, महाधणवइभंडारसाल व्व पउमोवसोहिया सुरयणा य, गयवइघड व्व सुपुक्खरोवसोहिया * वरारोहा य, सूरनरवइतणु ब्व विजयसमद्धासिया सवणा य, महाहारलट्ठि व्व बहुसरियालंकिया सुपाणिया य त्ति । अवि य जा नीलवंतपवहा महल्लकल्लोलरहिरतरंगा । पुव्वविदेहविभायं कुणमाणी सागरं पत्ता ॥१॥२७७८॥ तीसे किं वन्निजउ सासयरूवाए जलहिसरिसाए । सुर-विजाहर-नरवरमिहुणयउवभोगभूमीए ? ॥२॥२७७९॥ तीसे य सीयाए महाणईए दाहिणिल्लकूले अत्थि मंगलावई नाम विजयं । जं च-विलासिणिसरीरं व रत्तवई-१०% अहिट्ठियं, समुद्दतलं व रत्तालंकियं, नरिंदसेण ब्व विजयद्धयाणुगयं ति । अवि य बहुगिरिवरं सुपंडियकुलं व, बहुसरिजुयं सुहारो व्य । बहुकुडयं कूवं पिव, बहुदेस कुवियदेह व ॥३॥२७८०॥ ॐ तत्थ य अत्थि रयणसंचया नाम महापुरवरी । जा य-सुमहिल व्व सुदीहरच्छा सुपओहरा सुनासा सुवंसा सुवाला सुपाया ३२७ १. पढमम जे० ।। २. ब्व बेइ जे० ।। ३. सुपुक्करों जे० ॥ ४. व सुरसरियरमणाहिद्वियं, जंबुद्दीवपेरंत व सिंधुनिन्नयालंकियं, नरेंद° त्रु० का० ॥
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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