SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 354
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरिसंतिनाहचरिए 'आएसो 'त्ति भणित्ता वेजिं, विहिय निराकुलता पडिवेज्जें, एक्क मुएविणु ताण पहाणी, सा नवि कीं वइ होइ सयाणी, परिपुटु सो राई बेज्जू, 'बेज ! काई इय एरिसु कज्जू ?,' वृत्त 'कीय वितय भाविय, कीयवि मंस- रुहिर संभाविय, यहि अवि मिंज विरंजिय, तें कारण पडिंजोइ न सज्जिय, किंतु देव ! जइ तस्स जि अट्ठिय, पीसिवि पियइ त होइ जहट्टिय, ' राई वृत्त 'एउ न टुल्लहु, आणिवि पायहु माणउ बल्लहु,' एव कियइ सा सत्थीजाई, नज्जइ ने जम्मंतरजाई, इय एव पओ यहिं बहुसंजोयहिं, पयहं करवि सुत्थत्तणउं, पुण धम्मपरायणु, गुणगणभायणु, पालइ निवु रायत्तणउं ||२०||२६३३॥ अन्नदियहि उज्जाणयपालि, हरिसुप्फुल्लियनयणविसालिं, बद्धाविउ निवु 'सूरि जयंधरु, समवसरिउ इह सयलगुणंधरु, ' १. किंवइ का० ॥ २. होति सियाणी त्रु० ॥। ३. विज पा० ॥ ४. 'यहिं कयसं' जे० ॥ ५. पुणु जे० ॥ नरसिंघ कुमरस्स कहाणय ३०४
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy