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________________ यदि मुझे यह प्रति पूर्ण और खुली हुई प्राप्त होती तो मैं प्रतिलिपि इसी प्रति के अनुसार करता । इस प्रति के अन्त में विद्यमान ३७ श्लोक प्रमाण प्रशस्ति की प्रतिलिपि श्रीमान् चिमनलाल डाह्याभाई द्वारा मुद्रापित उपरिलिखित सूचिपत्र पृ० २२४-२२७ में छपी है। प्रशास्ति में लिखित पाठसंवत्सरे नग-भुजार्कमिते नभस्ये मासे पुरेऽणहिलपाटकनामधेये । सुश्रावके कुमरपालनृपे च राज्यं कुर्वत्यलिख्यत सुपुस्तकमेतदंग ! ॥ से यह कहा जा सकता है कि यह प्रति विक्रम संवत् १२२८ में भाद्रपद मास में अणहिल्लपुर (पाटण) में परमार्हत् सुश्रावक कुमारपाल महाराजा के राज्यकाल में लिखी गई थी। पा० संज्ञक प्रति पूर्ण एवं श्रेष्ठ स्थिति में है। इसके प्रथम पत्र पर परमात्मा श्री शान्तिनाथभगवान की प्रतिकृति एवं अन्तिम पत्र पर सुन्दर डिजाइनें भी हैं। इस प्रति की लिपि आकर्षक एवं सुवाच्य है। यह शुद्धप्राय: प्रति है। मैंने मुद्रण के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ की साद्योपान्त प्रतिलिपि इसी प्रति से की है। अत: प्रस्तुत ग्रन्थ में य, त, द, प, आदि व्यञ्जनों और अ, इ, उ, आदि स्वरों के शब्द प्रयोग इसी प्रति के अनुसार हैं। जे० संज्ञक ताड़पत्रीय मूल प्रति मैं प्राप्त नहीं कर सका । इस प्रति की माइक्रो फिल्म की एलार्जमेन्ट पूर्वक फोटो कोपी मुझे दानवीर, श्रुतप्रेमी श्रीमान् प्रतापभाई भोगीभाई जी ने श्रुतस्थविर दर्शनप्रभावक प्रवर्तक मुनिराज श्री जंबूविजयजी महाराज साहेब के सौजन्य से करवा कर दी थी। इस प्रति की लिपि भी सुवाच्य है। इसके पाठ अधिकतर पा० संज्ञक प्रति के अनुसार ही हैं । खो
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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