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________________ HTTP उपयुक्त प्रतियों का परिचय इस ग्रन्थ के संशोधन-सम्पादन के लिए मैंने कुल चार प्रतियों का आदर्श रूप में उपयोग किया है। इनमें से तीन प्रतियां ताड़पत्रों पर और एक प्रति कागदों पर लिखी गई हैं। का० संज्ञक कागद की प्रति तथा पा० एवं त्रु० संज्ञक ताड़पत्रीय प्रतियां पाटणनगरस्थित श्री हेमचन्द्राचार्य जैन ज्ञानमन्दिर में सुरक्षित हैं। जे० संज्ञक ताड़पत्रीय प्रति जैसलमेरदुर्गस्थित श्री जिनभद्रसूरि जैन ज्ञान भंडार में सुरक्षित है। 4 930000540130 लिपि, एवं पाठ आदि के अध्ययन से कहा जा सकाता है कि त्रु० संज्ञक प्रति प्रयुक्त आदर्श प्रतियों में से अधिक प्राचीन है। यह प्रति कर्मठ कार्यकर्ता श्रीमान् चिमनलाल डाह्याभाई दलाल द्वारा लिखित पत्तनस्थप्राच्यजैनभाण्डागारीयग्रन्थसूचि भाग प्रथम तैयार करते समय तक तथा संयुक्तरूप से कार्य करने वाले अनेकों ज्ञान भण्डारों के समुद्धारक श्रुतस्थविर मुनिराज श्री चतुरविजयजी महाराज (गुरुजी महराज) एवं आगमप्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज द्वारा अत्यंत परिश्रम से किए गए पाटणनगर के अन्यान्य ज्ञानभंडारों के समुद्धार काल तक सुवाच्य रूप से सुरक्षित थी । परन्तु तत्पश्चात् सम्भवत: व्यस्थापकों की असावधानी और अव्यवस्था के कारण आर्द्र वायु या जल के संयोग से इस प्रति के सब पत्र जुडकर काष्ठपट्टीसम बन गए । मैंने आधुनिकतम वैज्ञानिक पद्धति से अहमदाबादनगर में इसे खुलवाया भी, मगर प्रति के बहुत सारे पत्र चिपके ही रहे, जो खुले भी तो छोटे बड़े पत्रखण्डों के रूप में खुले । इस कारण से पत्रखण्डों में लिखित पाठों का सम्बन्ध पकड़ पाना कठिन था। फिर भी मैनें यथाशक्य इस प्रति के पाठों से मुद्रित वाचना के पाठों को मिलाया है और कहीं कहीं तो इस प्रति के पाठ मैंने मूलवाचना में भी स्विकार किए हैं।
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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