________________
सिरिसंतिनाहचरिए
नरसिंघकुमरस्स कहाणयं
खणि चउचरणऽन्भंतरपएसि, खणि गंडत्थलि, खणि मज्झदेसि, खणि भमइ चउद्दिसि सुहडपवरु, हिमगिरिहिं नाइ वर अमरकुमरु, नव दसणघाय, दस चलणघाय, एगारह करदारणनिहाय, चउ पुच्छयाय पण वेयघाय, पंचेव कुंभि चलणप्पहाय, एगूणवीस करिकरपहार, सत्तेय वयणघायणपहार, एक्कासीमुहवयणप्पओय, छच्चेव कुणइ नासणयजोय, अट्ठाऽऽसयअटु य करडघाय, चउदस उ विययवच्छप्पहाय, इय बहुविहगयसिक्खपओयहिं, किउ निफंदु गइंदु सुजोयहिं, वरजोइ ब्व जाउ नीसन्नु, तो आरुढ धरेविणु कन्नु, तिक्खंकुसु लेविणु, सारि घरेविणु, निउ सम्मुह रायंगणह, भड-हरि-करिपउरह, आगय पउरह, संचरंतवारंगणह ॥९॥२६२२॥ तं पेक्खिवि पउरिहिं जयकारिउ, भड-सामंतिहिं निरु नवकारिउ, पढिउ भट्ट-बंदिणेहिं समग्गेहि, ओवारणउं विहिउं थीवग्गिहि, भणिउ नदिण पेक्खिवि एतउ, ‘भुंजसु पुहइ पुत्त ! जयवंतउ,'
आसीसिउ माइहिं गुणवंतउ 'जीवि पुत्त ! तुहं कालु अणंतउ,' १. 'यजाय पा० विना ।। २. हबवण पा० । हवहे (ह)ण जे० ।। ३. आरुहिउ जे० । आरुड त्रु० ॥ ४. पउरेहिं त्रु ।। ५. बग्गेहिं जे० का० ॥ ६. नरेंदेण त्रु० का० ।। ७. जीव त्रु०॥