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________________ सिरिसंतिनाहचरिए भी की भी की की तं निसामित्तु नरनाहु रोमंचिओ, वरकयंबो व्य धाराहिं नं सिंचिओ, भणइ 'जो सीहु सुविणम्मि तई दिउ पवरलीलावियंभंतु सुविसिटुउ, तेण तु पुत्तु नरसीहु सुगुणडूढउ, होसए मियेनरिंदाण परियडूढउ, ' 'एव होउ 'त्ति तं वयणु सा मन्निउं, बहइ गब्भं सुहेणं पई वन्निजं, पसवकालम्भि जायम्मि वरपुत्तयं, जणइ पुव्व व्व सूरं व दिप्पंतयं, इय पुत्तह जम्मणि, कयनियकम्मणि, वद्धाविउ नरवरपवरु, बद्धावियगं पि णु, तो विहेप्पिणु, बद्धावणउं करेइ वरु || ३ || २६१६ ॥ नच्चहिं गायहिं बारबिलासिणि, आणहिं अक्खवत्तु सोवासिणि, बज्जइ मद्दलु तूरु सुहावउं, एइ महायणु सहु बद्धावरं, सम्माणि हिं विउस विसेस वि, मेल्लाविजहिं गोत्ति असेस वि, बद्धावण एव परिवित्त, नामह करणसमइ संपत्तइ, १.नियन पा० का ० ॥ २. परिवट्टी का० ॥ ३ अखयवत्त सुवा जे० का० ॥। ४. सउ का० | सउं जे० ॥ 342424242434343434343434 नरसिंघ कुमरस्स कहाण २८३
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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