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सिरिसंतिनाहचरिए
नरसिंघकुमरस्स कहाणयं
''दीवह मज्झि असंखह अत्थी, जंबद्दीव विभाविउ सत्थी, तासु भरहि वरखेत्ति पसिद्धी, उज्जेणी पुरि अत्थि समिद्धी, जा परचक्कभएण विवज्जिय, जा खाइय-वरसालसमज्जिय, जा वरभवणपतिसुविराइय, जा चउहट्टयमग्गविभाइय, जा देवउलपतिपरिमंडिय, जहिं निवसहिं कविराय-सुपंडिय, जा तलाय-वण-वाविसुसोहिय, जहिं निवसहिंजणवय अविरोहिय, जहिं अणाहवरमंडव दीसहि, जहिं अक्खाणय विउसेहिं सीसहि, जहिं णिवमग्ग जणोहसमाउल, रिद्धिमंत जहिं वणियमहाकुल, तहिं इयगुणजुत्तहिं, गोउरगुत्तहिं, उज्जेणिहिंबहुगुणनिलउ, जियसत्तुमहानिवु, दारियगुरुरिवु, करइरज्जुनरवरतिलउ॥१॥२६१४॥ जो पयापालणे बद्धवरकक्खओ, जो य धम्मम्मि निचं पि कयलक्खओ, जो य संगामि वइरियणणिकयसंखओ, जो य चउरंगबललद्धअविसंखओ,
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१. जंबुद्दीउ जे० का० ।। २. "रगोत्तहि पा० ।।