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________________ ॥ ऊँ ह्रीं श्रीं अहँ नमः ॥ ॥ हस्तिनापुरतीर्थमण्डन श्रीशान्तिनाथस्वामिने नमः ।। ॥ श्रीमदात्म-वल्लभ-समुद्रसदूरुभ्यो नमः ।। सम्पादकीय स्वकथ्य पूर्णतल्लगच्छीय श्रुतस्थविर आचार्यभगवन्त श्रीमद् देवचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज साहेब के द्वारा विरचित सिरिसंतिनाहचरियं नामक ग्रन्थ के प्रकाशन के पल में मैं आज अत्यन्त आनन्द और आत्मसन्तोष का अनुभव करता हूं। इस ग्रन्थ पर संशोधन सम्पादन कार्य का प्रारम्भ मैंने मेरे परमोपकारी जिनशासनरत्न प्रशान्तमूर्ति गुरुदेव श्रीमद् विजयसमुद्रसूरीश्वरजी महाराज की परोक्ष अन्त:प्रेरणा एवं आशिष से तथा आगम प्रभाकर श्रुतशीलवारिधि पुण्यनामधेय विद्वद्वरेण्य मुनिराज श्री पुण्यविजयजी महाराज साहेब के चिरकाल कार्यसहयोगी विद्यागुरुजी श्रीमान् अमृतभाई मोहनलाल भोजक जी की प्रेरणा से विक्रम संवत् २०४१ मुंबईनगरी में किया था। उन दिनों मैं इस विषम संशोधन-सम्पादन विषय रूप राह और मञ्जिल का अनभिज्ञ राही था, अत: मुझे इस अंजानी संशोधन-सम्पादन की राह
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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