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________________ सिरिसंतिनाहचरिए इण्हि पयहामु भोए भवोदहिपहोवएसए पावे । छेत्तूण णेहपासे सेयमओ अब्भुवेहामो' ॥२२॥६४७ ॥ करयलकयंजलिवुडा भणति मणिकुंडलिं पंहिदुमणा । 'इच्छामो अणुसडिं, जणणीकजं कयं तुम ||२३|| ६४८ ॥ अवि बंधुक, सिणिद्धवरमित्तकजमहवा वि । अहवा वि हु गुरुकजं, अहवा तं नत्थि जं न कयं ॥ २४॥६४९॥ एवं पर्यापिऊण भत्ती - बहुमाणसंभमगुणेहिं । नेहाणुरागपसंरं सक्कारेउ विसज्जति ॥ २५ ॥ ६५० ॥ ते महा इड्ढी चउहिं सहस्सेहिं परिवुडा धीरा । धम्मरुइस्स सयासे निक्खता खायकित्तीया ॥ २६ ॥६५१॥ तो कम्मतरुकडिल्लं दढ कठिण-सुतिक्खतव कुठारेहिं । छिंदित्तु भावपवणेण मेलिउं एगठाणम्मि ॥ २७॥६५२ ॥ सुक्कज्झाणाणलजलियजलणजालाहिं णिद्दहेऊण । उप्पाडियवरणाणा पत्ता मोक्खं सयासोक्खं ॥२८॥६५३। एत्तो य ताणि सिरिसेणरायपमुहाणि उत्तरकुराए । मिहणत्तणम्मि भोगे भोत्तुं पलिओवमे तिन्नि ॥ २९॥६५४॥ सोहम्मे उबवन्नाई सत्त-वरकंति - दित्तिजुत्ताइं । पलियंतियगाउयाई भुंजंति मणोरमे भो ||३०||६५५ ॥ इय परमपवित्तं सव्वलोए सुवित्तं भवतियमइसेयं संतिणाहस्स एयं । उवचरियविसिद्धं लेसओ किंचि सिहं, कुणउ भवकयाणं दारणं भो ! दुहाणं ॥ १ ॥ ६५६ ॥ ॥ इइ संतिणाहचरिए सिरिदेवचंदसूरिविरइए पढम- बितिय तइयभवग्गहणाइं समत्ताई ॥ १. पदु पा० का० ॥। २. यत्तियाउयाई जे० का० || इंदु - बिंदुसेणाणं पव्वज्जा मोक्खगमणं य ६९
SR No.600084
Book TitleSiri Santinaha Chariyam
Original Sutra AuthorDevchandasuri
AuthorDharmadhurandharsuri
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1996
Total Pages1016
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size17 MB
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