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________________ 000000000 कप० सुबो ॥४९९॥ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 निग्गया, थेराओ अज्जपोमिलाओ अज्जपोमिला साहा निग्गया, थेराओ अज्जजयंताओ अज्जजयंती साहा निग्गया, थेराओ अज्जतावसाओ अज्जतावसी साहा निग्गया इति ॥ ॥ वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभदाओ पुरओ थेरावली एवं पलोइज्जइ, साहा निग्गया) स्थविरात् आर्यनागिलात् आर्यनागिला शाखा निर्गता (थेराओ अजजयंताओ अजजयंती साहा निगाया) स्थविरात आर्यजयन्तात आर्यजयन्ती शाखा निर्गता (थेराओ अज्जतावसाओ अजतावसी साहा निग्गया) स्थविरात् आर्यतापसात् आर्यतापसी शाखा निर्गता, इति ॥ अथ विस्तरवाचनया स्थविरावलीमाह-(वित्थरवायणाए पुण अज्जजसभदाओ पुरओ थेरावली एवं पलोइज्जइ ) विस्तरवाचनया पुनः आर्ययशोभद्रात् अग्रतः स्थविरावली एवं प्रलोक्यते, तत्रास्यां किल वाचनायां भूरिशो भेदा लेखकदोषहेतुका ज्ञेयाः, ततः स्थविराणां शाखाः कुलानि च प्रायः सम्प्रति न ज्ञायन्ते, नामान्तरण तिरोहितानि भविष्यन्तीति तत्र तद्विदः प्रमाणं, तत्र कुलं एकाचार्यसन्ततिर्गणस्त्वेकवाचनाचारमुनिसमुदायः, यदुक्तं " तत्थ कुलं विन्नेयं । एगायरिअस्स संतई जा उ ॥ दुन्हकुलाण मिहो पुण । साविक्खाणं गणो होइ ॥१॥” शाखास्तु एकाचार्यसन्त 10000000000000000000000000000000000000000 ॥४९९|| Jain Education Intl For Private & Personel Use Only w.jainelibrary.org
SR No.600080
Book TitleKalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Original Sutra AuthorVinayvijay
Author
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1911
Total Pages618
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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