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________________ संपादकीय उत्तरा० अवचूर्णिः पूर्वार्धः ॥१४॥ XOXXXKOOXOXOXOXOXXoxox संपादकीय यत्किंचित् ___ श्रमणो भगवान् महावीर महाराजे अंतसमये सोल पहारेनी अंतिम देशना दीधी हती. तेमां पुण्यपापना फळने जणावनार एकसो | दश अध्ययनो, नहि पुछेलाना उत्तरो एवां छत्रीश अध्ययनो अने छेल्लू मरुदेवा अध्ययन विचारता-प्रकट करता भगवान् काळधर्म पाम्या. आ अध्ययनो रूपी जे अंतिमदायजो ते पैकीना जे अपृष्टव्याकरण रूप ३६ अध्ययनो ते आ श्रीउत्तराध्ययनानि छे. ते श्रीउत्तराध्ययननी अमुद्रित अवचूर्णि आ फंडे छपाववानो विचार कर्यो अने छपाववी शरू करी. पूर्वकालमां श्रीआचारांगनी उत्तरे श्रीउत्तराध्ययन भणाबवामां आवतुं हतुं. तेथी आनुं नाम उत्तराध्ययन पड्युं छे. एटली बात अत्रे याद आपबी जरूरी छे के आ. शय्यम्भवसूरि महाराजे श्रीदशवकालिकसूत्रनी रचना करी त्यार पछीथी श्रीआचारांगसूत्रना बदले पहेला श्रीदशवकालिकसूत्र भणाववानुं शरु थयु. श्रीउत्तराध्ययननी उपर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, अवचूरि, बालावबोध विगेरे घणु ज छे, ते श्रीउत्तराध्ययनसूत्र संबंधी विवेचन. ख्याल प्रकाशके अत्रे आपेल छे. श्रीउत्तराध्ययनसूत्रनी आ पूर्वाचार्यकृत अवचूर्णिनो मूळ साथेनो प्रथम भाग प्रगट थाय छे. आ महाकाय ग्रन्थ होवाथी प्रथम भाग पहेलो बहार पडे छे. बीजा भागमां लघुबृहद्विषयानुक्रम, तेमज घणां परिशिष्टो अने बीजी अमुद्रित अवचूरिनो आदि अंत भाग आपवानो छे. साथे साथे अप्राप्य प्रायः एकज सचित्र उत्तराध्ययनसूत्र मूळनी साक्षरवर्य श्रीपुण्यविजयजी महाराजनी प्रत परना चित्रो ब्लोक बनावीने आपवानां छे. वी एरीते PRAKAKKO-KOKeXOXOXOXOOXDIKAX १४ ॥ Jain Education International For Privale & Personal use only nelibrary.org
SR No.600069
Book TitleUttaradhyayanani Purvarddha
Original Sutra AuthorChirantanacharya
AuthorKanchanvijay
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1882
Total Pages408
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationManuscript & agam_uttaradhyayan
File Size19 MB
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