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________________ पडिविविएमुकत्यवि अपवरगमज्झटिअधणकणगमणिमुत्ताहलसङ्घसेलप्पवालाइएमु नाणाविहभाखभुज्जााएपु अण्णेमुरिविधिहक्यूमु मणिभित्तिए संकन्तिवसेण बाहिं पडिभासमाणेसु गहणाभिप्पाएण अहमहमिगाए धावमागीओकन्धवि सलोलनचन्तनट्टि- वानरभवे, आलहलहन्तमहन्तकसिणवेणिदण्डेसु फलिहकुट्टिमपडिप्फलिए तु सदप्पसप्पभोग भयसभण दूरं नस्समागीओ कथवि आ-मुनराषष। गासफलिहभित्तित्थंभा: एमु अवगासप्पडिभासेण सरमसगमगाओ अप्फलमागोओ अनाहिस्तमागोओ लजमागीओ तो आगासेऽवि अवगासाभावं सङ्कमाणीओअप्पबलचक्खुब्ध इोतओ निहत्थं पसारेमाणीओ कथा उच्चतरेवि घरे अप्फलग भएण अहो संकुडमाणीओ कत्थवि अनत्यसण्ठिअपडिविम्बिासणेसु निविसमागीओ अ सव्वत्थवि विहलारंभाओ मूढत्त - सणेण ससंरम्भाओ करस नो नायरस्स परिहासहेऊ हवन्ति । एआरिसरिद्धि समिद्धे सव्वलोभसिद्धे तंमि नयरे नयरहारत्तो कथवि पराभव अपत्तोसव्वोऽवि परिसप्पन्त अपरिमेअतेअदिपन्तदिव्यमणिसे हरोमगिसेहरो नाम नरिंदो,नरिंदोव्व जो वसीकारं करेइ दुइमाणंपि सदप्परिउसपसंदोहाणं,दोहाणं अभिहागर जो निमजणवएमु नो संसहेइ,सहेइ जो पुरुंदरुव परमरजरिद्धिसम्पयाए, पयाए परिपालण करेइ जो जगयव्व अणवरयं, वरयन्ति जं अहंपुब्धि भाइ पवरं बरं व नरवइगुण पमिद्धिरमणीओ, मणीश्रोवि रोहणगिरिव जो विअरेइ मग्गणजणाण, जणाणंदकरो जो एवं सव्वेहिवि पयारेहि, तस्स पयस्सवि सालवच्छत्थलालंकरणदिव्यमणिमाला मणिमालाभिहाणा रूबाइसवगुणपहाणा अवरा कुलदेवीव पट्टदेवी,जा पुण कलाकेलि. P वल्लहत्तणेण अइसाइरूवत्तणेण य पच्चक्खरूवेव रई, न पुग कइआवि आणरुद्धप्पसररइ,जा बंभपवत्त गेण इंसाइत गेग य पयड ख्वधरव्व भारई, न पुण कन्नत्तणेवि जड जम्मपाणिग्गहगमई, जा अञ्चब्भुअनणयपग्महिमालयत्त गेण सवपसि बसइत्तगेण य अवररूपव्य एव्वई, न पुण का आवि कयरुइसाई, जा पुरिमुत्तमहिअयहरणगुणचणेण सव्वजणाणन्दणतणेण य पञ्चाखच Eatonina For Privale & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600056
Book TitleAchar Pradip
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherDevchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
Publication Year1927
Total Pages208
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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