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________________ श्रीमन्महाभारतम् : श्लोकानुगामी द्रावयेयं शरश्चापि (द्रोण) १९७.२० द्रुपदश्चैव राजर्षिस्तत (आ) ६७.८० द्रुपदो मत्स्यराजश्च (उद्योग) ६४.२६ द्रोणको प्रतीयात (उद्योग) ५२.४ द्रोणपुत्र च कर्ण च (उद्योग) १५५.३३ द्राविडाश्च कलिंगाश्च (अनु। ३३.२२ द्रुपदः श्वशुरो येषां (आ) २०५.२१ द्रुपदो वर्धयन् मानं (उद्योग) ५७.५ द्रोणकणों प्रतीयाता (वन) ४८.६ द्रोणपुत्र पराजित्य (कर्ण) ५८.२ दाबिहाः सिंहलाश्चैव (सभा) ३४.१२ पासह पुणज्यिान) १९२.५९ दुम किपुरुषाचार्यम् (सभा) ३७.१३ द्वाणकणा महषासा (वाण)१७२.२४ द्रोणपत्र परस्कल्या ___ द्रुपदस्सुतवरिष्यः पपञ्च (कणं)८५.२ द्रुमं किंपुरुषाचार्य (सभा) ४४.१६ द्रोणः कृपश्चैव विविंशति (विरा)६६.५ द्रोणपुत्रं महेष्वासं (द्रोण) ८५.१६ द्वाविडास्तत्र युध्यन्ते (द्रोण) १३.४३ द्रुपदस्य कुले जाता (उद्योग) १८७.१४ दुमं यथा वाऽप्युदके (शांति)२१६.४६ द्रोणः कृपः सैन्धव (भीष्म) ५६.१३७ द्रोणपुत्रं शिने प्ता (भीष्म)११५.२७ द्राविडास्तु निषादास्तु (कर्ण) ४६.४ द्रुपदस्य च पुत्राणां (सोप्तिक) ८.६७ दुमसेन इति ख्यातः (आ) ७.३५ द्रोणगंभीरपाताल (द्रोण) ११४.१५ द्रोणपुत्रवधप्रेप्स (द्रोण) २००.११४ द्वाव्यमाणं बलं दृष्ट्वा (कर्ण) ७८.६ द्रुपदस्तु ततः क्रुद्धो (द्रोण) १४.४२ द्रुमसेनं चतुः षष्ट्या (शल्य) १२.५३ द्रोणग्राहदुराधर्षा (द्रोण) १४६.५५ द्रोणपुत्रसहायेन (मो) ३.२७ द्वाव्यमाणान्यदृश्यन्त (कर्ण) २५.४३ द्रुमसेनस्तु संक्रुद्धो (द्रोण) १७०.२० द्रोणग्राहन्हदान्मुक्तो (द्रोण) १०१.२६ द्रोणपुत्रस्तु विक्रान्त (द्रोण)१५६.१४५ द्रुतं सरस्वतीकूलात् (अनु) १००.१५ द्रुमाः केचन सामन्ता(शांति) १३०.४१ द्रोणचापविमुक्तेन (द्रोण) २२.८ द्रोणपुवस्तु शिरसि (कर्ण) ११.१६ द्रुपदः कौरवान्दृष्ट्वा (आ) १३८.१५ द्रुपदस्य तथा पुत्रा (वन) ५१.१७ मारेषु च रम्येषु(शांति) १४६.५ द्रोग दुयोधन कृपाः (द्रोण) ७४.७ द्रोणपुत्रस्य विक्रान्तं (कर्ण) ३.१५ दू पदद्रौपदेयाना (शांति) ४२.५ द्रुपदस्य शरा घोरा (आ) १३८.१७ द्रुमाचलानाम्बधरैः (द्रोण) २७.२२ द्रोण दुपदपुत्रस्तु (भीष्म) ४५.३४ द्रोणपुत्रस्य सहज (सौप्तिक) १६.२२ द्रुपदः पञ्चविंशत्या (भीष्म) १०३.६ दुपदस्य सपुत्रस्य (उद्योग) १६१.५ द्रुमाणां वातभग्नां (वन) १४३.११ द्रोणद्रोणायनी (स्त्री) २०.१६ द्रोणपुत्रस्य सहजो (सौप्तिक) ११.२० दू पदं च विराटं च (द्रोण) १८६.४३ द्रुपदस्य सुतां (विरा) ३६.११ माक्मी महातेजा (उद्योग) १५८.७ द्रोणद्रोणिकप गप्लो (कर्ण) ४१.७३ द्रोणपुत्रादृते वीरा (शल्य) २६.३६ द्रुपदं च विराटं च (भीष्म)११९.१० द्रुपदस्य सुता राजन्(उद्योग)१९२.४० दुमाः शाखाश्च मुमुचः(शांति)३३३.५ द्रोणद्रोणिकृपश्चैव (उद्योग) ५५.४६ द्रोणपुत्रेण शल्येन (भीष्म) ५५.२ द्रुपदं तु सहानीकं (द्रोण) १६८.१३ द्रुपदस्य सुता ह्यषा(वन) २७३.५ द्रुमाणां शिखराणीव (द्रोण) २०१.३० द्रोणपर्व ततश्चितं (आ) २.२५४ द्रोणपुत्रो महेष्वासः (उद्योग) १६७.३ द्र पदं पञ्चभिस्तीक्ष्ण (द्रोण) ४३.८ दुपदस्यात्मजान् (द्रोण) १५७.१ दुमैः पुष्पफलोपेतैः (वन) १७३.४ द्रोणपर्वणि ये शूरा (आ) २.२६८ द्रोणः पुरस्ताज्जघने (द्रोण) १६३.११ द्रपदं वषसेनस्तु ससैन्यं (द्रोण)१६५.१३ द्रुपदस्याप्यभूत्सना (उधाण) १९. होत्वं प्रतिपद्यस्व (आ) ८४.१७ दोणः पाञ्चालपत्रेण (द्रोण) १७.६ द्रोणभीष्माणेव (शल्य) ७.४० दुपदश्च त्रिभिर्वाण (भीष्म)१११.२५ द्रुपदेनैवमुक्तस्तु भारद्वाज(आ)१३१.१२ द्रुह्य न्न मनसा वापि (अनु) २१.३४ द्रोणः पाञ्चालपुत्रेण (भीष्म) ११६.४५ द्रोणभीष्मावति विभो (शल्य) ७.२० पदश्च महातेजा (उद्योग) ५०.४६ पदेषा हि सा जी (आ) १९७.५१ द्रोण आचष्ट पुत्राय (आ) १३२.१८ द्रोणः पाञ्चालराजानं (द्रोग)१४.२६ द्रोणभीष्मो तु संक्रुद्धा (भीष्म) ६६.२७ पदश्च विराटश्च (उद्योग) १८४.७ पदो द्रोपदेयाश्च (भीष्म) २५.१८ द्रोणकर्णमुखेः षभि (द्रोण) ४९.२२ द्रोण पार्थस्तवोपेता (द्रोण) १८८.४० द्रोणभीष्मी रणे यत्तो(भीष्म) ५८.११ Jain Education Intersalon For PVC Personel Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600055
Book TitleMahabharatam
Original Sutra AuthorNagsharan Sinh
Author
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1992
Total Pages840
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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