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श्रीमन्महाभारतम् : सीकानुकाणी
क्षान्तमेव मयेत्युक्त्वा (शांति)२७१.५२ क्षीणेषु च ब्राह्मणेषु (वन) १०३.४ क्षिप्यन्ते सेनतेनैव (शांति) ३१६.११ क्षिप्रभुत्तरकालानि (शल्य) ९२.२३ क्षीरोषस्य समुद्रस्य (शांति) ३५० शान्तान् दान्तांस्तथा (अनु) २३.६१ क्षीणोऽन्नसञ्चयो विप्र (शल्य)४८.४० क्षिप्रकारी जितक्रोधः (शांति) ५७.३१ क्षिप्रमेव महाकायं (शांति) २८२.१ क्षीरोदो भरतश्रेष्ठ (भीष्म) १... क्षांतो दान्तो जित (अनु) १४२.३२ मिष्यन्ति हृदयं मेऽद्य (द्रोण) ४८.२६ क्षिप्रं च गावो बहला (विरा) १०.१३ क्षिप्रमेव महाभाग(शल्य) ६२४२ क्षीरोदो अ॒ दधीनां(शांति) २८४.१३. शान्त्या मह्या गोपेन (बनु) २६.६२
क्षितावटसि राजेन्द्र (बा) ७४.६४ क्षिप्रं च समनह्यन्त (सौप्तिक) ६.३१ क्षिप्रमेव यथा त्वेत (सभा) २०.१२ अण्णगात्रा महाराज (कर्ण) २८.२९ क्षामयित्वा तु कौरव्यं (विरा)६८.६७
क्षितावास्तां महेष्वा (द्रोण) १४६.५३ क्षिप्रं त्वाममिकामश्च (उद्योग)१२.३० क्षिप्रमष्यति ते भता (वन) २८०.६१ जुत्वरीतस्तु विमनास्त (वन) ६५.६. क्षीणकोको निरातकः (आश्व) ४६.५८
क्षिति खं च दिशश्चव(द्रोण)१७५.६६ क्षिप्रं निवर्तवमलं (वन) २६६.४ क्षिप्रमेष्यामि भद्रं ते (उद्योग) ८.२३ झुल्लिपासातपसहः (शांति) १४७.७ क्षीणकोशो मा (शांति) २०३.१६
क्षिति मता जानुभिस्तेऽय (कर्ण)१०.३० क्षिप्रं बलचतुर्माग (विरा) ५२.१७ सिपहस्तं द्विज श्रेष्ठ (द्रोण) १४ अत्पिपासादयो (शांति) २८८.२५ क्षीणग्रहणवृत्तिश्च (शांति) १०७.५
क्षिति वा देवलोक (शांति) ३२८.६ क्षिप्रं भवति धर्मात्मा (भीष्म) ३३.३१ क्षिप्रहस्तश्चित्रयोधी (उद्योग)१५१.२८ क्षुत्पिपासापरिम्लाना (द्रोण) १९३.६ क्षीणबाणी विधनुषौ (शांति) ५.३ क्षितिस्थं सहदेवं च (वन) १५७.३८ क्षिप्रं वा सन्धिकामः (शांति)१३१.१० सीबद्विह्वलो बीरो (द्रोण) १५.३३ क्षुत्पिपासापरिश्रान्त (आ) १७३.६ क्षीणमांसविरुधिर (बन) १०२.१० क्षितौ निपतितं काले (आ) १७३.३ क्षिप्रं विजानाति (उद्योग) ३३.२२ क्षीबा इवान्ये चोन्पत्ता (द्रोण)९७.२० क्षुत्पिपासापश्रिन्ता (विरा) ६७.४ क्षीणयुधे सात्वते युध्य(द्रोण) १४२.४८ क्षिताबन्धकवृष्णीनां (सभा) ३६.१७ क्षिप्रं शरैः पहभिरमित्र (कर्ण) ५४.३४ श्रीयता दुष्कृतं कर्म (वन) २८१.१६ क्षुत्पिपासापरीताङ्गी (वन) ६७.१८ क्षीणरला च पृथिवीं (शल्य) ३१.४५ क्षिपतश्च परास्तस्य (भीष्म) ७४.४ क्षिप्रं श्येनस्य चरतो (द्रोण)१६१.३१ क्षीयते हि सदा (शांति) ३३१.५५ क्षुत्पिपासापरीताश्च (अनु) १४५.१५ क्षीणशस्त्रास्त्रकवचः (कर्ण) १३.१७ क्षिपत्येकेन वेगेन (उद्योग) ९०.२६ क्षिप्रं श्येनाभिपन्नानां (द्रोण) २६.१४ श्रीयन्ते सर्वसैन्यानि (द्रोण) १५५.६४ मुत्पिपासाविधातार्य (मा) २६.१३ क्षीणस्य दीर्घसूत्रस्य (शांति) १३१.१ क्षिपत्येकेन वेगेन (उद्योग) ६०.१६ क्षिप्रं सन्नद्धकवची (सौप्तिक) ५.३७ क्षीयन्ते सर्वसैन्यानि (द्रोण) १५८.६६ क्षुत्पिपासाश्रमाविष्टो (अन) ७१.७ क्षीणस्याप्यायनं दृष्टं (अनु) १०६.५८ क्षिप्तं कुद्धन तं वृक्ष (मा) १६३.१८ क्षिप्रमन्तर्दधे शौरिश्च (सभा) २.२८ शीरनद्योऽथ निवहन् (शांति) २८४.४ क्षुत्पिपासेऽजयद्राम (द्रोण) ५६.११ क्षीणस्यार्थाभि (शांति) १५३.२८ क्षिप्त क्षिप्तं रणे (आ) २२५.२७ क्षिप्रमन्वागमिष्यामि (स्त्री) २०.२४ क्षीरं पिबन्तस्तिष्ठन्ति (सभा) ६१.२७ सद्धर्मसंज्ञा प्रणुदत्या (वन) २६०.२४ क्षीणायुः केन भवति (अनु) १४.४३ क्षिप्ता भ्राम्य शरैः (द्रोण) १७५.५१ क्षिप्रमन्वेहि भद्रं (उद्योग) १४.५ क्षीरनवा व सरितो (मनु) ७१.२७ क्षुद्र कृत्वा फल+पापं (वन)२६८.२७ क्षीणायुषो महाराज (वन) १५५.६२ क्षिाभिषीका काकाय (वन)२५२.७० क्षिप्रमागम्यतां राजन् (उद्योग) ८.२२ क्षीरोदनं च भुजीया (अनु) १४.३५४ क्षुद्रः क्षुद्रसहायश्च (द्रोण) ५१.२० क्षोणे कलियुगे पैव (वन) १५५.२७ क्षिप्ताः ह्य का यदा (शल्प) ४६.७२ क्षिप्रमानीयतां सर्व (शल्य) ३५.१९ पीरोदमयनं चंब जन्मो (आ) २.६१ क्षद्राक्षेणेव जालेन (उद्योग) ३४.६॥ क्षीणे मनसि सर्वस्मिन् (आश्व)४२.४७ क्षिप्तः काञ्चन (द्रोण) १५६.१७२ सिमाप्नुहि कौन्तेय (वन) ३७.२२ क्षीरोःसागराणां च (मनु) १४.३२५ क्षुद्राक्षेणेव जालेन (उद्योग) १२६॥
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